________________ जितने बहुधन्धी विवेक विहीन हैं। जो कठिन भय से और दारुण शोक से अतिदीन हैं, वे मुक्त हो निजबंध से, स्वच्छन्द हो सब द्वन्द्व से, छूटे दलन के फनद से, हो ऐसा जग में, दुःख से विचले न कोई, वदननाथ हिले न काई, पाप कम कर न काई, असन्मार्ग धरे न कोई, हो सभी सुखशील, पुण्याचार धर्मव्रती, सबका ही परम कल्याण। संदर्भः 1. बोधिचर्यावतार, संपा.-श्री परशुराम शर्मा, प्रका.मिथिला विद्यापीठ दरभंगा, 1960, 3/21 अध्यात्म और विज्ञान, विनोबा भावे, पृ. 71 बोधिचार्यावतार, संपा:- श्री परशुराम शर्मा, प्रका.-मिथिला विद्या-पीठ, दरभंगा, 1960, 3/11 (89)