________________ अंबट्टीए जाओ बोक्कसोत्ति वुच्चइ, निसाएण सुद्दीए जातो सोवि बोक्कसो, सुद्देण निसादीए, कुक्कुडओ एवं सच्छंदमतिविगप्पितं। 22. क्षत्रियाः शस्त्रजीवित्वं अनुभूय तदाभवन् / वैश्याश्च कृषिवाणिज्यपशुपाल्योपजीविताः / तेषां शुश्रूषणाच्छूद्रास्ते द्विधा कार्वकारवः / . कारवो राजकाद्याः स्युस्ततोऽन्ये स्थुरकारवः // कारवोऽपि मता द्वेधा स्पृश्यास्पृश्यविकल्पतः। तत्रास्पृश्याः प्रजावास्याः स्पृश्याः स्यु कर्त्तकादयः // .. - आदिपुराण, 16/184-186 23. ततो णो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं-पंडए वीत्ते (चाहिए) कीवे ? 24. यदाह -- '3 बाले बुड़े नपुंसे य, जड्डे कीवे य वाहिए। तेणे रायावगारीय, उम्मत्ते य अंदसणे // 1 // . . दासे दुढे (य) अणत्त जुंगिए इय। ओबद्धए य भयए, सेहनिप्फेडिया इय / / 2 / / स्थानांगसूत्रम, अभयदेवसूरिवृत्ति, (प्रकाशक-सेठ माणेकलाल, चुन्नीलाल, अहमदाबाद, . विक्रम संवत् 1994) सूत्र 3/202, वृत्ति, पृ. 154 से असई उच्चागोए असंइ णीयागोए। णो हीणे णो अइरिते णो पीहए॥ , इतिसंखाय के गोतावादी, के माणावादी, कंसि वा एगे गिज्झे? तम्हापंडिते णो हरिसे णो कुज्झे। - आचारांग, (सं. मधुकरमुनि),1/2/3/75 जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, संग्रहकर्ता-विजयमूर्ति, लेख क्रमांक 8, 31, 41, 54, 62, 67, 69. 27. अ. आवश्यकचूर्णि, जिनदासगणि, ऋषभदेव केसरीमल संस्था, रतलाम, भाग 1, पृ.554 ब. भक्तपरिज्ञा, 128 स. तित्थोगालिअ, 777 28. आचारांग, सं.मधुकरमुनि, 1/2/6/102. 25. 26. . (80)