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________________ के विषय में यह विचार सम्भव नहीं है, क्योंकि सभी मनुष्य समान हैं। मनुष्यों की एक ही जाति है। न तो सभी ब्राह्मण शुभ्र वर्ण के होते हैं, न सभी क्षत्रिय रक्त वर्ण के, न सभी वैश्य पीत वर्ण के और न सभी शूद्र कृष्ण वर्ण के होते हैं, अतः जन्म के आधार पर जाति व वर्ण का निश्चय सम्भव नहीं है। समाज में ऊंच-नीच का आधार किसी वर्ण विशेष या जाति विशेष में जन्म लेना नहीं माना जा सकता। न केवल जैन एवं बौद्ध परम्परा, अपितु हिन्दू परम्परा में भी अनेक उदाहरण हैं, जहां निम्न वर्णों से उत्पन्न व्यक्ति भी अपनी प्रतिभा और आचार के आधार पर श्रेष्ठ कहलाए। ब्राह्मणों की श्रेष्ठता पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए वरांगचरित' में जटासिंह नन्दि कहते हैं कि जो ब्राह्मण स्वयं राजा की कृपा के आकांक्षी हैं और उनके द्वारा अनुशासित होकर उनके अनुग्रह की अपेक्षा रखते हैं, ऐसे दीन ब्राह्मण नृपों (क्षत्रियों) से कैसे श्रेष्ठ कहे जा सकते हैं। द्विज ब्रह्मा के मुख से निर्गत हुए अतः श्रेष्ठ हैं- यह वचन केवल अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कहा गया है। ब्राह्मण प्रतिदिन राजाओं की स्तुति करते हैं और उनके लिए स्वस्ति पाठ एवं शांति पाठ करते हैं, लेकिन वह सब भी धन की आशा से ही किया जाता है, अतः ऐसे ब्राह्मण आप्तकाम नहीं माने जा सकते हैं। फलतः, इनका अपनी श्रेष्ठता का दावा मिथ्या है। जिस प्रकार नट रंगशाला में कार्य स्थिति के अनुरूप विचित्र वेशभूषा को धारण करता है, उसी प्रकार यह जीव भी संसाररूपी रंगमंच पर कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न रूपों को प्राप्त होता है। तत्त्वतः आत्मा न ब्राह्मण है, न क्षत्रिय, न वैश्य और न शूद्र ही। वह तो अपने ही पूर्व कर्मों के वश में होकर संसार में विभिन्न रूपों में जन्म ग्रहण करता है। यदि शरीर के आधार पर ही किसी को ब्राह्मण, क्षत्रिय कहा जाए, तो यह भी उचित नहीं है। विज्ञ-जन देह को नहीं, ज्ञान (योग्यता) को ही ब्रह्म कहते हैं, अतः निकृष्ट कहा जाने वाला शूद्र भी ज्ञान या प्रज्ञा-क्षमता के आधार पर वेदाध्ययन करने का पात्र हो सकता है। विद्या, आचरण एवं सद्गुण से रहित व्यक्ति जाति विशेष में जन्म लेने मात्र से ब्राह्मण नहीं हो जाता, अपितु अपने ज्ञान, सद्गुण आदि से युक्त होकर ही ब्राह्मण होता है। व्यास, वशिष्ठ, कमठ, कंठ, द्रोण, पाराशर आदि अपने जन्म के आधार पर नहीं, अपितु अपने सदाचरण एवं तपस्या से ही ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए थे। अतः, ब्राह्मणत्व आदि सदाचार और कर्तव्यशीलता पर आधारित हैं- जन्म पर नहीं। सच्चा ब्राह्मण कौन ? - जैन परम्परा ने सदाचरण को ही मानवीय जीवन में उच्चता और निम्नता का (61)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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