________________ शांति के संस्थापन के लिए हैं। अनाग्रह सामाजिक जीवन से वैचारिक विद्वेष एवं वैचारिक संघर्ष को समाप्त करता है। अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह पर आधारित जैन आचार के नियम-उपनियम प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में सामाजिक दृष्टि से युक्त हैं, यह माना जा सकता है। . 10. अस्तिकायधर्म - अस्तिकायधर्म का बहुत कुछ सम्बंध तत्त्वमीमांसा से है, अतः उसका विवेचन यहां अप्रासंगिक है। इस प्रकार जैन आचार्यों ने न केवल वैयक्तिक एवं आध्यात्मिक पक्षों के सम्बंध में विचार किया, वरन् सामाजिक जीवन पर भी विचार किया है। जैन सूत्रों में स्पष्ट प्रमाण है कि जैन आचारदर्शन सामाजिक पक्ष का यथोचित मूल्यांकन करते हुए उसके विकास का भी प्रयास करता है। ___ वस्तुतः, जैनधर्म वैयक्तिक नैतिकता पर बल देकर सामाजिक सम्बंधों को शुद्ध और मधुर बनाता है। संदर्भ1. ऋग्वेद, 10/19/12. ईशावास्योपनिषद्, 6.. 3. वही, 1. श्रीमद्भागवत, 7/14/8: आचारांग, 1/5/5. 6. प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/1/2. वही, 2/1/3. समन्तभद्र, युक्त्यानुशासन, 61. 9. स्थानांग, 10/760. देखें - सागरमल जैन, व्यक्ति और समाज, श्रमण, वर्ष 34, (1983) अंक 2. 11. देखें - प्रबंधकोश, भद्रबाहु कथानक. 12. उद्धृत - (क) रतनलाल दोशी, आत्मसाधना संग्रह, पृ.441. (ख) भगवतीआराधना, भाग 1, पृ.197. ____13. Bradle, Ethical, Studies. (57) ant in ons i e .