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________________ भारतीय चिंतकों ने कहा है - ___ अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु बसुधैव कुटुम्बकम् // संन्यास की भूमिका न तो आसक्ति की भूमिका है और न उपेक्षा की। उसकी वास्तविक स्थिति ‘धाय' (नर्स) के समान समत्वरहित कर्त्तव्य भाव की होती है। कहा भी गया है - ___सम दृष्टि जीवड़ा करे कुटुम्ब प्रतिपाल। - अन्तर सूं न्यारा जूंधाय खिलावे बाल॥ वस्तुतः निर्ममत्व एवं निःस्वार्थ भाव से तथा वैयक्तिकता और स्वार्थ से ऊपर उठकर कर्तव्य का पालन ही संन्यास की सच्ची भूमिका है। संन्यासी वह व्यक्ति है, जो लोक मंगल के लिए अपने व्यक्तित्व एवं अपने शरीर को समर्पित कर देता है। वह जो कुछ भी त्याग करता है, वह समाज के लिए एक आदर्श बनता है। समाज में नैतिक चेतना को जाग्रत करना तथा सामाजिक जीवन में आने वाली दुःप्रवृत्तियों से व्यक्ति को बचाकर लोक मंगल के लिए उसे दिशा-निर्देश देना संन्यासी का सर्वोपरि कर्त्तव्य माना गया है, अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय दर्शन में संन्यास की जो भूमिका प्रस्तुत की गई है, वह सामाजिकता की विरोधी नहीं है। संन्यासी क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर खड़ा हुआ व्यक्ति होता है, जो आदर्श समाज रचना के लिए प्रयत्नशील रहता है। अब हम मोक्ष के प्रत्यय की सामाजिक उपादेयता पर चर्चा करना चाहेंगे। (6) भारतीय दर्शन मानव जीवन के लिए अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष- इन चार पुरुषार्थों को स्वीकार करता है। यदि हम सामाजिक जीवन के संदर्भ में इन पर विचार करते हैं, तो इनमें से अर्थ, काम और धर्म का सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन काल में इन तीनों की साधना को त्रिवर्ग की साधना कहा जाता था। सामाजिक जीवन में ही इन तीनों पुरुषार्थों की उपलब्धि सम्भव है। अर्थोपार्जन और काम का सेवन तो सामाजिक जीवन से जुड़ा हुआ ही होता है, किंतु भारतीय चिंतन में धर्म भी सामाजिक व्यवस्था और शांति के लिए ही है, क्योंकि धर्म को 'धर्मोधारयते प्रजाः' के रूप में परिभाषित कर उसका सम्बंध भी हमारे सामाजिक जीवन से जोड़ा गया है, वह लोकमर्यादा और लोक-व्यवस्था का ही सूचक है। अतः, पुरुषार्थ-चतुष्टय में केवल मोक्ष ही एक ऐसा पुरुषार्थ है, जिसकी सामाजिक सार्थकता विचारणीय है। प्रश्न यह है कि क्या (36)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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