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________________ समाप्त करने का प्रयास किया और सामाजिक सम्बंधों की शुद्धि पर बल दिया। (4) सम्भवतः भारतीय दर्शन को जिन आधारों पर सामाजिक जीवन से कटा हुआ माना जाता है, उनमें प्रमुख हैं- राग या आसक्ति का प्रहाण, संन्यास या निवृत्ति मार्ग की प्रधानता तथा मोक्ष का प्रत्यया ये ही ऐसे तत्त्व हैं, जो व्यक्ति को सामाजिक जीवन से अलग करते हैं, अतः भारतीय संदर्भ में इन प्रत्ययों की सामाजिक दृष्टि से समीक्षा आवश्यक है। . सर्वप्रथम भारतीय दर्शन आसक्ति, राग या तृष्णा की समाप्ति पर बल देता है, किंतु प्रश्न यह है कि क्या आसक्ति या राग से ऊपर उठने की बात सामाजिक जीवन से अलग करती है। सामाजिक जीवन का आधार पारस्परिक सम्बंध है और सामान्यतया यह माना जाता है कि राग से मुक्ति या आसक्ति की समाप्ति तभी सम्भव है, जबकि व्यक्ति अपने को सामाजिक-जीवन से या पारिवारिक जीवन से अलग कर ले, किंतु यह एक भ्रांत धारणा ही है। न तो सम्बंध तोड़ देने मात्र से राग समाप्त हो जाता है, न राग के अभाव मात्र से सम्बंध टूट जाते हैं, वास्तविकता तो यह है कि राग या आसक्ति की उपस्थिति में हमारे यथार्थ सामाजिक सम्बंध ही नहीं बन पाते। सामाजिक जीवन और सामाजिक सम्बंधों के मूल में व्यक्ति की राग-भावना ही काम करती है। सामान्यतया राग द्वेष का सहगामी होता है और जब सम्बंध राग द्वेष के आधार पर खड़े होते हैं, तो इन सम्बंधों से टकराहट एवं विषमता स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है। बोधिचर्यावतार में आचार्य शांतिदेव लिखते हैं - उपद्रवा ये च भवन्ति लोके यावन्ति दुःखानि भयानि चैव। सर्वाणि तान्यात्म परिग्रहेण तत् किं ममानेन परिग्रह / आत्मान् परित्यज्य दुःख त्यैक्तुं न शक्यते॥ . __- बोधिचर्यावतार, 8/134-135 संसार के सभी दुःख और भय एवं तद्जन्य उपद्रव ममत्व के कारण होते हैं। जब तक ममत्व बुद्धि का परित्याग नहीं किया जाता, तब तक इन दुःखों की समाप्ति सम्भव नहीं है, जैसे अग्नि का परित्याग किए बिना तजन्य दाह से बचना असम्भव है। राग हमें सामाजिक जीवन से जोड़ता नहीं है, अपितु तोड़ता ही है। राग के कारण मेरा या ममत्व भाव उत्पन्न होता है। मेरे सम्बंधी, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा राष्ट्र - ये विचार विकसित होते हैं और उसके परिणामस्वरूपभाई-भतीजावाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता (32)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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