________________ को या चैत्तसिक विचलनों को समाप्त कर पाता है, वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में शांति स्थापित करता है, वे सभी धर्म हैं, इसीलिए गीता में भी कहा गया है कि समत्व ही योग है। इसी बात को प्रकारान्तर से भागवत में भी कहा गया है कि समत्व की आराधना ही अच्युत अर्थात् भगवान की आराधना है। इस प्रकार भारतीय जीवन-दर्शन का प्राथमिक सिद्धांत है- हम तनावों से मुक्त होकर जीवन जीए। वर्तमान युग में जो भौतिकवादी, भोगवादी और उपभोक्तावादी संस्कृतियों का विकास हुआ है, उसके कारण आज व्यक्ति अधिक तनावग्रस्त होता जा रहा है। मानव आज जिसे विकास समझ रहा है, वह ही किसी दिन मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विनाश का कारण सिद्ध होगा। अत: समत्वपूर्ण या समतावादी जीवन दृष्टि का विकास आवश्यक है, यही भारतीय संस्कृति का लक्ष्य है। .. . आत्म-स्वातंत्र्य या परमात्म स्वरूप की उपलब्धि .. भारतीय जीवन-दर्शन का दूसरा मुख्य संदेश आत्मस्वातंत्र्य है। यहां यह समझ लेना आवश्यक है कि भारतीय दर्शनों के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्दता नहीं है। उसके अनुसार स्वच्छन्दता अनैतिक है, पाप मार्ग है और स्वतंत्रता नैतिकता है, धर्म है। सभी व्यक्तियों की यही आकांक्षा रहती है कि वे समस्त प्रकार की परतंत्रता या बंधनों से मुक्त हों। यहां परतंत्रता का अर्थ है- दूसरों पर निर्भरता। यहां तक कि भारीय श्रमण जीवनदर्शन ऐन्द्रिक विषयों या पर-पदार्थों की दासता ही नहीं, ईश्वर की दासता को भी स्वीकार नहीं करता। इसी बात को एक उर्दूशायर ने इस प्रकार कहा है . 'इंसा की बदबख्ती अंदाज के बाहर है। . . कमबख्त खुदा होकर बंदा नजर आता है।' वह यह मानता है कि चाहे जो भी ऐन्द्रिक एवं मानसिक विषयभोग तो वे हमें दासता की ओर ले जाते हैं वे सभी हमारे सम्यक् विकास में बाधक हैं, अतः न केवल मन एवं इंद्रियों के विषय भोगों की दासता ही दासता है, अपितु किसी भी परमसत्ता की इच्छा के आगे समर्पित होकर अकर्मण्य हो जाना भी एक प्रकार की दासता ही है। भारतीय श्रमण दर्शन उपास्य और उपासक, भक्त और भगवान के भेद को भी शाश्वत मानकर चलने को भी एक प्रकार की परतंत्रता ही मानता है। इसलिए उनकी मुक्ति की अवधारणा यही रही है कि व्यक्ति स्वयं परमात्म दशा को उपलब्ध हो जाए। अप्पा सो परमप्पा' यह उनके जीवन-दर्शन का मूल सूत्र है। वह यह मानता है कि तत्त्वतः आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है, सभी प्राणी परमात्म रूप हैं। हम तत्त्वतः परमात्मा ही (7)