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________________ भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्य भारतीय संस्कृति में जीवन के चार मूल्य जिस प्रकार पाश्चात्य-आचारदर्शन में मूल्यवाद का सिद्धांत लोकमान्य है, उसी प्रकार भारतीय नैतिक-चिंतन में पुरुषार्थ-सिद्धांत, जो कि जीवन-मूल्यों का ही सिद्धांत है, पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। भारतीय-विचारकों ने जीवन के चार पुरुषार्थ या मूल्य माने हैं 1. अर्थ (आर्थिक-मूल्य)- जीवन-यात्रा के निर्वाह के लिए भोजन, वस्त्र, आवास आदि की आवश्यकता होती है, अतः दैहिक-आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले इन साधनों को उपलब्ध कराना ही अर्थपुरुषार्थ है। ___ 2. काम (मनोदैहिक-मूल्य)- जैविक-आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन जुटाना अर्थपुरुषार्थ और उन साधनों का उपभोग करना काम-पुरुषार्थ है। दूसरे शब्दों में, विविध इंद्रियों के विषयों का भोग कामपुरुषार्थ है। 3. धर्म (नैतिक-मूल्य)- जिन नियमों के द्वारा सामाजिक-जीवन या लोकव्यवहार सुचारु रूप से चले, स्व-पर कल्याण हो और जो व्यक्ति को आध्यात्मिकपूर्णता की दिक्षा में ले जाए, वह धर्मपुरुषार्थ है। 4. मोक्ष (आध्यात्मिक-मूल्य)- आध्यात्मिक-शक्तियों का पूर्ण प्रकटीकरण मोक्ष है। जैन-दृष्टि में पुरुषार्थचतुष्टय . सामान्यतया, यह समझा जाता है निवृत्तिप्रधान जैन-दर्शन में मोक्ष ही एकमात्र पुरुषार्थ है। धर्म-पुरुषार्थ की स्वीकृति उसके मोक्षानुकूल होने में ही है। अर्थ और कामइन दो पुरुषार्थों का उसमें कोई स्थान नहीं है। जैनविचारकों के अनुसार अर्थ अनर्थ का मूल है,110 सभी काम दुःख उत्पन्न करने वाले हैं,111 लेकिन यह विचार एकांगी ही माना जाएगा। कोई भी जिनवचन एकान्त या निरपेक्ष नहीं है। जैन-विचारकों ने सदैव ही व्यक्ति को स्वपुरुषार्थ से धनोपार्जन की प्रेरणा दी है। वे यह मानते हैं कि व्यक्ति को केवल अपने पुरुषार्थ से उपार्जित सम्पत्ति के भोग करने का अधिकार है। दूसरों के द्वारा उपार्जित सम्पत्ति के भोग करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। गौतमकुलक में कहा गया है कि पिता के द्वारा उपार्जित लक्ष्मी निश्चय ही पुत्र के लिए बहन होती है और (102)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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