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________________ को उत्तराध्ययन की अपेक्षा पूर्ववर्ती सिद्ध करती है, क्योंकि उत्तराध्ययन की भाषा में 'त' के लोप की प्रवृत्ति देखी जाती है। ऋषिभाषित में जाणति, परितप्पति, गच्छती, विज्जती, वट्ठती, पवत्तती आदि रूपों का प्रयोग बहुलता से मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि भाषा और विषयवस्तु- दोनों की ही दृष्टि से यह एक पूर्ववर्ती ग्रंथ है। अगंधन कुल के सर्प का रूपक हमें उत्तराध्यययन 25, दशवकालिक 26 और ऋषिभाषित 27 -तीनों में मिलता है, कितु तीनों स्थानों के उल्लेखों को देखने पर यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता हैं कि ऋषिभाषित का यह उल्लेख उत्तराध्ययन तथा दशवैकालिक की अपेक्षा अत्यधिक प्राचीन है, क्योंकि ऋषिभाषित में मुनि को अपने पथ से विचलित न होने के लिए इसका मात्र एक रूपक के रूप में प्रयोग हुआ है, जबकि दशवैकालिक और उत्तराध्ययन में यह रूपक राजमती और रथनेमि की कथा के साथ जोड़ा गया है। इसी प्रकार, आध्यात्मिक कृषि का रूपक ऋषिभाषित के अध्याय 26 एवं 32 में और सुत्तनिपात अध्याय 4 में है, किंतु सुत्तनिपात में जहां बुद्ध स्वयं कहते हैं कि मैं कृषि करता हूं, वहां ऋषिभाषित में वह एक सामान्य उपदेश है, जिसके अंत में यह कहा गया है कि जो इस प्रकार की कृषि करता है, वह सिद्ध (सिझंति) होता है, फिर चाहे वह ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र हो, अतः ऋषिभाषित सुत्तनिपात, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक की अपेक्षा प्राचीन है। इस प्रकार, ऋषिभाषित आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध का परवर्ती और शेष सभी अर्द्धमागधी आगम-साहित्य का पूर्ववर्ती ग्रंथ है। इसी प्रकार, पालित्रिपिटक के प्राचीनतम ग्रंथ सुत्तनिपात की अपेक्षा भी प्राचीन होने से यह सम्पूर्ण पालित्रिपिटक से भी पूर्ववर्ती कहा जा सकता है। जहां तक इसमें वर्णित ऐतिहासिक ऋषियों के उल्लेखों के आधार पर कालनिर्णय करने का प्रश्न है, केवल वजीपुत्त को छोड़कर शेष सभी ऋषि महावीर और बुद्ध से या तो पूर्ववर्ती हैं, या उनके समकालिक हैं। पालित्रिपिटक के आधार पर वज्जीयपुत्त (वात्सीयपुत्र) भी बुद्ध के लघुवयस्क समकालीन ही हैं, वे आनंद के निकट थे। वजीपुत्रीय सम्प्रदाय भी बुद्ध के निर्वाण की प्रथम शताब्दी में ही अस्तित्व में आ गया था, अतः, इनका बुद्ध के लघुवयस्क
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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