________________ सुमरुता, 7. महामरुता, 8. मरुद्देवा, 9. भद्रा, 10. सुभद्रा, 11. सुजता, 12. सुमनायिका और 13. भूतदत्ता। आठवें वर्ग में काली, सुकाली, महाकाली, कृष्ण और सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, महासेनकृष्णा और महासेनकृष्णा- इन दस श्रेणिक की पत्नियों का उल्लेख है। उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण को देखने से लगता है कि केवल किंकम और सुदर्शन ही ऐसे अध्याय हैं, जो स्थानांग में उल्लिखित विवरण से नाम साम्य रखते हैं , शेष सारे नाम भिन्न हैं। अंतकृद्दशा की विषयवस्तु सम्बंधी प्राचीन उल्लेख स्थानांग में हमें सर्वप्रथम अंतकृद्दशा की विषयवस्तु का उल्लेख प्राप्त होता है। इसमें अंतकृद्दशा के ये दस अध्ययन बताए गए हैं - नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त (रामपुत्त), सुदर्शन, जमाली, भयाली, किंकिम, पल्लतेतीय और फ . लिअम्बपुत्र'। यदि हम वर्तमान में उपलब्ध अंतकृद्दशा को देखते हैं, तो उसमें उपर्युक्त दस अध्ययनों में केवल दो नाम सुदर्शन और किंकम उपलब्ध हैं। समवायांग में अंतकृद्दशा की विषयवस्तु का विवरण देते हुए कहा गया है कि इसमें अंतकृत् जीवों के नगर, उद्यान,चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धि विशेष, भोग और उनका परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुतज्ञान का ध्यान, तप तथा क्षमा आदि बहुविध प्रतिमाओं, सत्रह प्रकार के संयम, ब्रह्मचर्य, आकिंचन्य, समिति, गुप्ति, अप्रमाद, योग, स्वाध्याय और ध्यान सम्बंधी विवरण हैं। आगे इसमें बताया गया है कि इसमें उत्तर संयम को प्राप्त करने तथा परिग्रहों को जीतने पर चार कर्मो के क्षय होने से केवल ज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार से होती है, इसका उल्लेख है, साथ ही उन मुनियों की श्रमण पर्याय, प्रयोगोपगमन, अनशन, तम और कर्मरजप्रवाह से मुक्त होकर मोक्षसुख को प्राप्त करने सम्बंधी उल्लेख हैं। समवायांग के अनुसार इसमें एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन और सात वर्ग बताए गए हैं, जबकि उपलब्ध अंतकृद्दशा में आठ वर्ग हैं, अतः समवायांग में वर्तमान अंतकृद्दशा की अपेक्षा एक वर्ग कम बताया गया है। ऐसा लगता है कि समवायांगकार ने स्थानांग की मान्यता और उसके सामने उपलब्ध ग्रंथ में एक समन्वय बैठाने का प्रयास किया है। ऐसा