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________________ महानिशीथसूत्र में चूलिका नमस्कारमंत्र की उपस्थिति उसकी विकास यात्रा को समझने में किसी भी प्रकार सहायक नहीं होती है। महानिशीथ में जो यह बताया गया है कि 'पंचमंगल महाश्रुतस्कंध' का व्याख्यान मूलमंत्र की नियुक्ति भाष्य एवं चूर्णि में किया गया था और यह व्याख्यान तीर्थंकरों से प्राप्त हुआ था। काल दोष से वे नियुक्तियां, भाष्य और चूर्णियां नष्ट हो गईं, फिर कुछ समय पश्चात् वज्रस्वामी ने नमस्कार महामंत्र का उद्धार कर उसे मूल सूत्र में स्थापित किया। यह वृद्धसम्प्रदाय है। यह तथ्य नमस्कारमंत्र के रचयिता का पता लगाने में सहायक होता है। यद्यपि आवश्यक नियुक्ति में वज्रस्वामी के उल्लेख में इस घटना का निर्देश नहीं है, फिर भी इससे दो बातें फलित होती हैं- प्रथम तो यह कि हरिभद्र के काल तक यह अनुभूति थी कि नमस्कार महामंत्र के उद्धारक वज्रसूरि थे और दूसरे यह कि उन्होंने इसे आगम में स्थापित किया। इसका तात्पर्य यह भी है कि भगवतीसूत्र में नमस्कारमंत्र की स्थापना वज्रस्वामी ने की और वे इसके उद्धारक या किसी अर्थ में इसके निर्माता हैं। वज्रस्वामी का काल लगभग ईसा की प्रथम शती है। संयोग से यही काल अंगविज्जा का है। खारवेल का अभिलेख इससे लगभग 150 वर्ष पूर्व का है। आगमिक व्याख्या साहित्य में आवश्यक नियुक्ति में सर्वप्रथम हमें सम्पूर्ण चूलिका सहित नमस्कारमंत्र का निर्देश मिलता है। आवश्यक नियुक्ति में पंचपदात्मक नमस्कारमंत्र के साथ-साथ उसकी चूलिका भी उपलब्ध हो जाती है। मैंने अपने एक स्वतंत्र लेख में यह स्थापित करने का प्रयत्न किया है कि नियुक्तियों का रचनाकाल ईसा की दूसरी शताब्दी के लगभग है। इससे यह फलित होता है कि चूलिका सहित पंचपदात्मक नमस्कारमंत्र लगभग ईसा की दूसरी शताब्दी में अस्तित्व में आ गया था। दिगम्बर परम्परा में षट्खण्डागम के आदि में भी पंचपदात्मक नमस्कारमंत्र उपलब्ध होता है, किंतु विकसित गुणस्थान सिद्धांत को उपस्थिति आदि के कारण यह ग्रंथ ईसा की ५वीं शताब्दी के पूर्व का सिद्ध नहीं होता है। इसी प्रकार मूलाचार में भी चूलिका सहित नमस्कारमंत्र उपलब्ध होता है, किंतु यह ग्रंथ भी लगभग ६ठी शताब्दी के आस-पास का है। इसमें तो नमस्कारमंत्र और उसकी चूलिका आवश्यक नियुक्ति से ही उद्धृत की गई है, क्योंकि मूलाचार एवं आवश्यक नियुक्ति में न केवल प्रस्तुत चूलिका सहित नमस्कारमंत्र उद्धृत हुआ है, अपितु उसकी अनेक गाथाएं भी उद्धृत हैं, अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवश्यक नियुक्ति (199)
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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