________________ 24. कुणाल श्रावस्ती 25. लाढ़ कोटिवर्ष 25 1/2 केकयी अर्द्ध श्वेतिका जात्यार्य : अंवष्ठ', कलिंद, विदेह'। जात्यार्य : अंबष्ठ', कलिंद, विदेह, हरित, चुंचुण (या तुंतुण' ) / कुलार्य : उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य / कार्य : दौष्यिक (कपड़े बचने वाले), सौत्रिक (सूत बेचने वाले), कार्पासिक (कपास बेचने वाले), सूत्रवैकालिक, भांडवैकालिक, कोलालिय (कुम्हार), नरवाहनिक (पालकी आदि उठाने वाले)। शिल्पार्य : तुन्नाग (रफू करने वाले), तन्तुवाय (बुनने वाले), पट्टकार (पटवा), देयडा (दृतिकार, मशक बनाने वाले), वरुट्ट (पिंछी बनाने वाले), छण्विय (छावड़ी, चटाई आदि बुनने वाले), काष्ठ पादुकाकार (लकड़ी की पादुका बनाने वाले), मुंजपादुकाकार, छत्रकार, वज्झार (वाहन बनाने वाले), पोत्थकर (पूंछ के बालों से झाडू आदि बनाने वाले अथवा मिट्टी के पुतले बनाने वाले), लेप्पकार, चित्रकार, शंखकार, दंतकार, भांडकार, जिज्झगार(?) सेल्लगार (भाला बनाने वाले), कोडिगार (कौड़ियों की माला आदि बनाने वाले) / भाषार्य-अर्द्धमागधी भाषा बोलने वाले। लिपि के प्रकार-ब्राह्मी, यवनानी, दोसपुरिया, खरोष्टी। 1. महावीर के काल में साकेत के पूर्व में अंग-मगध, दक्षिण में कौशाम्बी, पश्चिम में स्थूणा और उत्तर में कुणाला तक जैन श्रमणों को विहार करने की अनुमति थी। तत्पश्चात् राजा सम्प्रति ने अपने भट आदि भेजकर 24 देशों को जैन श्रमणों के विहार योग्य बनाया। * * देखिए- बृहत्कल्पभाष्य, गा. 3262 / 2. ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री से उत्पन्न संतान को अख्तष्ठ कहा गया है, देखिए- मनुस्मृति तथा आचारांगनियुक्ति (20-27) / वैश्य पुरुष और ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न संतान को वैदेह कहा गया है, देखिए- मनुस्मृति तथा आचारांगनियुक्ति (20-27) / उमास्वाति के तत्त्वार्थभाष्य (3, 14) में इक्ष्वाकु, विदेह, हरि, अम्बष्ठ, ज्ञात, कुरू, बबुनाल (?), उग्र, भोग, राजन्य आदि की गणना जाति (137)