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________________ की मिट्टी के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु का शरीर में लेप नहीं करता। अपने लिए बनाया हुआ आवाकर्म, औद्देशिक आदि भोजन ग्रहण नहीं करता। कांतारभक्त, दुर्भिक्ष-भक्त, प्राघूर्णक-भक्त (अतिथियों के लिए बनाया भोजन) तथा दुर्दिन में बनाया हुआ भोजन ग्रहण नहीं करता। अपध्यान, प्रमादचर्या, हिंसाप्रधान और पापकर्म का उपदेश नहीं देता। वह कीचड़रहित, बहता हुआ, छाना हुआ, मगध देश के आधे आढ़क के प्रमाण में स्वच्छ जल केवल पीने के लिए ग्रहण करता था। इस प्रकार उसकी बहुत कुछ चर्या निर्ग्रन्थों के समान थी। वह भी सल्लेखनापूर्वक कालधर्म को प्राप्त कर वह ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुआ (37) / . उपांगों में गृहस्थ जीवन के संस्कारों का उल्लेख औपपातिकसूत्र में जन्मदिवस की खुशी में पहले दिन ठिइवडिय (स्थितिपतिता) उत्सव, दूसरे दिन चंद्र-सूर्यदर्शन और छठवें दिन जागरिका (रात्रिजागरण) उत्सव, ग्यारहवें दिन सूतक बीत जाने पर बारहवें दिन के उल्लेख है। उपांग साहित्य में उल्लेखित औपपातिक नामक उपांग में निम्नांकित 72 कलाओं का उल्लेख मिलता है१. लेह (लेखन) 2. गणिय (गणित) 3. रूब (चित्र बनाना) . नट्ट (नृत्य) वाइय (वादित्र) सरगय (सात स्वरों का ज्ञान) पोक्खरगय (मृदंग वगैरह बजाने का ज्ञान) समताल (गीत आदि के समताल का ज्ञान) 9... रॉय (जुआ) जणवय (एक प्रकार का जुआ) 11. पासय (पासे का ज्ञान) 12. अट्ठावय (चौपड़) 13. पोरेकन्व (शीघ्रकवित्व) 14. दगमट्टिय (मिश्रित द्रव्यों का पृथक्करण विद्या) 15. अणविहि (पाकविद्या) (117 10.
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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