________________ जैन धर्म एवं दर्शन-136 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-132 मणिनाममाला, अभिधानचिंतामणिवृत्ति, अभिधानचिंतामणिटीका, अभिधानचिंता मणिसारोद्धार, अभिधानचिंतामणि व्युत्पत्तिरत्नाकर, अभिधानचिंतामणिअवचूरि, अभिधानचिंतामणि रत्नप्रभा, अभिधानचिंतामणि-बीजक, अभिधानचिंता मणिनाममाला-प्रतीकावली, अनेकार्थसंग्रह, अनेकार्थसंग्रहटीका, निघंटुशेष, निघटुशेषटीका, देशीशब्दसंग्रह, शिलोच्छकोश, शिलोच्छकोशटीका, नामकोश, शब्दचंद्रिका, सुंदरप्रकाश शब्दार्णव, शब्दभेदनाममाला, शब्दभेदनाममालावृत्ति, नामसंग्रह, शारदीयनाममाला, शब्दरत्नाकर, अव्ययैकाक्षरनाममाला, शेषनाममाला, शब्दसंदोहसंग्रह, शब्दरत्नप्रदीप, विश्रवलोचनकोश, नानार्थकोश, पंचवर्गसंग्रहनाममाला, अपवर्गनाममाला, एकाक्षरी नानार्थकांड, एकाक्षरीनाममालिका, एकाक्षरकोश, एकाक्षरनाममाला आदि। इस प्रकार, जैनाचार्यों ने अनेक कोश ग्रन्थों की भी रचना की है। जैनाचार्यों की ज्योतिष-सम्बन्धी संस्कृत-कृतियाँ जैन-संस्कृत-साहित्य में ज्योतिष-सम्बन्धी साहित्य का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा हुआ है, प्राचीन जैन-आगमों में सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और गणिविज्जा में प्रारम्भिक-जैन-ज्योतिष की चर्चा रही हुई है। इसके अतिरिक्त, अंगविज्जा भी फलित-ज्योतिष की कुछ चर्चा करती है, किन्तु ये सभी ग्रन्थ प्राकृत में हैं। संस्कृत में रचित परवर्तीकालीन ज्योतिष-सम्बन्धी ग्रन्थ निम्न हैंलग्नविचार प्रश्नसुन्दरी ज्योतिषप्रकाश वर्षप्रबोध चतुर्विशिकोद्धार उस्तरलावयंत्र चतुर्विशिकोद्धार अवचूरि उस्तरलावयंत्र टीका ज्योतिषसारसंग्रह दोषरत्नावली जन्मपत्रीपद्धति जातकदीपिकापद्धति (हर्षकीर्तिसूरि) जन्मप्रदीपशास्त्र जन्मपत्रीपद्धति (मुनि महमोदय) केवलज्ञानहोरा मानसागरीपद्धति फलाफलविषयक-प्रश्नपत्र यन्त्रराज टीका उदयदीपिका ज्योतिषरत्नाकर यन्त्रराज