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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-134 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-130 एवं कथा-साहित्य के अतिरिक्त भी विविध विषयों पर भी जैनाचार्यों एवं जैन-लेखकों ने संस्कृत में ग्रन्थ लिखे हैं। जैन-साहित्य के बृहद् इतिहास भाग पाँच में उनकी सूची उपलब्ध है। उस आधार पर हम यहाँ मात्र उनका नाम-निर्देश कर रहे हैं। संस्कृत एवं प्राकृत के व्याकरण सम्बन्धी जैनाचार्यों के संस्कृत ग्रन्थ भाषा का प्राण व्याकरण है, अतः जैन-आचार्यों ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के व्याकरण-सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की। उनके इन व्याकरण-सम्बन्धी ग्रन्थों का माध्यम संस्कृत भाषा रही। उनके व्याकरणसम्बन्धी-ग्रन्थों की सूची अति विस्तृत है, जो निम्नानुसार है- ऐन्द्रव्याकरण, शब्दप्राभृत, क्षपणक-व्याकरण, जैनेन्द्र-व्याकरण, जैनेन्द्रन्यास, जैनेन्द्रभाष्य और शब्दावतारन्यास, महावृत्ति, शब्दांभोजभास्करन्यास, पचंवस्तु, लघुजैनेन्द्र, शब्दार्णव, शब्दार्णवचंद्रिका, शब्दार्णवप्रक्रिया, भगवद्वाग्वादिनी, जैनेन्द्रव्याकरण वृत्ति, अनिट्कारिकावचूरि, शाकटायन-व्याकरण, पाल्यकीर्ति शाकटायन के व्याकरण-सम्बन्धी अन्य ग्रन्थ, अमोघवृत्ति आदि चिंतामणिशाकटायनव्याकरणवृत्ति, मणिप्रकाशिका, प्रक्रियासंग्रह, शाकटायनटीका, रूपसिद्धि, गणरत्नमहोदधि, लिंगानुशासन, धातुपाठ, पंचग्रंथी या बुद्धिसागर व्याकरण, दीपकव्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दार्णव्याकरण, शब्दार्णव वृत्ति, विद्यानंदव्याकरण, नूतनव्याकरण, प्रेमलाभव्याकरण, शब्दभूषणव्याकरण, प्रयोगमुखव्याकरण, सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन, उसकी स्वोपज्ञलघुवृत्ति, स्वोपज्ञमध्यमवृत्ति, रहस्यवृत्ति, बृहदवृत्ति, बृहन्यास, न्यासारसमुद्धार, लघुन्यास, न्याससारोद्धार-टिप्पण, है मटुंढिका, अष्टाध्यायतृतीयपदवृत्ति, हैमलघुवृत्ति-अवचूरि, चतुष्कवृत्ति-अवचूरि, लघुवृत्ति-अवचूरि, हैमलघुवृत्तिढुंढिका, लघुव्याख्यानढुंढिका, ढुंढिका दीपिका, बृहदवृत्ति सारोद्धार, बृहदवृत्ति-अवचूर्णिका, बृहदवृत्तिढुंढिका, बृहवृत्तिदीपिका, कक्षापटवृत्ति, बृहदवृत्तिटिप्पण, हैमोदाहरणवृत्ति, हैमदशपादविशेष और हैमदशपादविशेषार्थ, बलाबलसूत्रवृत्ति, क्रियारत्नसमुच्चय, न्यायसंग्रह, स्यादिशब्दसमुच्चय, स्यादिव्याकरण, स्यादिशब्ददीपिका, हेमविभ्रमटीका, कविकल्पद्रुमटीका, तिडन्वयोंक्ति, हैमधातुपारायण, हैमधातुपारायणवृत्ति, हेमलिंगानुशासनवृत्ति,
SR No.004421
Book TitleJain Dharm evam Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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