________________ जैन धर्म एवं दर्शन-116 जैन धर्म एवं साहित्य का इतिहास-112 रचनाकाल ईस्वी सन् की प्रथम या द्वितीय शती के बाद का नहीं हो सकता है। यद्यपि सभी महत्त्वपूर्ण आगम-ग्रंथों पर नियुक्तियाँ नहीं लिखी गई हैं, आगम-साहित्य के कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों पर ही नियुक्तियाँ लिखी गई थीं, जो आज भी उपलब्ध हैं। इनमें प्रमुख हैं- 1. आवश्यक-नियुक्ति, 2. आचारांग-नियुक्ति, 3. दशवैकालिक-नियुक्ति, 4. उत्तराध्ययन-नियुक्ति, 5. सूत्रकृतांग-नियुक्ति, 6. दशाश्रुतस्कंध-नियुक्ति, 7. वृहदकल्पनियुक्ति आदि। निशीथसूत्र पर भी नियुक्ति लिखी गई थी, किन्तु यह निशीथभाष्य में इतनी घुल मिल गई है कि उसे उससे अलग कर पाना कठिन है। इनके अतिरिक्त, सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित पर भी नियुक्ति लिखे जाने की प्रतिज्ञा तो उपलब्ध है, किन्तु ये नियुक्तियाँ लिखी भी गई थीं या नहीं, यह कह पाना कठिन है। प्राचीन स्तर की नियुक्तियाँ उस आगम का संक्षिप्त उल्लेख कर कुछ महत्वपूर्ण शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करती हैं। इनके अतिरिक्त, नियुक्ति-साहित्य के दो अन्य ग्रंथ और भी उपलब्ध हैं- 1. पिण्डनियुक्ति ओर 2. औधनियुक्ति, यद्यपि ये दोनों ग्रंथ दशवैकालिकनियुक्ति के ही एक विभाग के रूप में भी माने जाते हैं, साथ ही श्वेताम्बरमूर्तिपूजक-परम्परा इन दोनों को आगम-स्थानीय भी मानती है। गोविंदाचार्य-कृत दशवैकालिक-नियुक्ति की सूचना तो उपलब्ध हैं, किन्तु वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। ___ आगमिक-व्याख्या-साहित्य में नियुक्तियों के बाद भाष्य लिखे गये। भाष्यों में विशेषावश्यकभाष्य विशेष प्रसिद्ध है। इसके तीन विभाग हैं, प्रथम विभाग में पंच ज्ञानों की चर्चा है, दूसरा विभाग गणधरवाद के नाम से प्रसिद्ध है, इसमें ग्यारह गणधरो की प्रमुख शंकाओं का निर्देश कर उनके महावीर द्वारा दिये गये समाधानों की चर्चा है। तृतीय विभाग निह्नवों की चर्चा करता है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में वृहत्कल्पभाष्य व्यवहारभाष्य, जीतकल्पभाष्य, पंचकल्पभाष्य भी उपलब्ध हैं। बृहदकल्प पर वृहदभाष्य और लघुभाष्य ऐसे दो भाष्य मिलते हैं। व्यवहारभाष्य, जीतकल्पभाष्य- ऐसे दो अन्य भाष्य भी मिलते है। पिण्डनियुक्तिभाष्य के भी दो संस्करण मिलते हैं। इसी प्रकार, पिण्डनियुक्ति पर भी एक अन्य भाष्य लिखा गया है, किन्तु ये तीनो भाष्य मैंने नहीं देखे हैं। भाष्यों में व्यवहारभाष्य, जीतकल्पभाष्य