________________ जैन धर्म एवं दर्शन-231 जैन-तत्त्वमीमांसा-83 दोनों ही पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है। विवेक-क्षमता के आधार पर आत्मा के भेद विवेक-क्षमता की दृष्टि से आत्माएँ दो प्रकार की मानी गई हैं- 1. समनस्क, 2. अमनस्क / समनस्क-आत्माएँ वे हैं, जिन्हें विवेक-क्षमता से. युक्त मन उपलब्ध है और अमनस्क-आत्माएँ वे हैं, जिन्हें ऐसी विवेकक्षमता से युक्त मन उपलब्ध नहीं है। जहाँ तक धार्मिक-जीवन के क्षेत्र का प्रश्न है, समनस्क-आत्माएँ ही नैतिक आचरण कर सकती हैं और वे ही धार्मिक-साध्य युक्ति की उपलब्धि कर सकती हैं, क्योंकि विवेक-क्षमता से युक्त मन की उपलब्धि होने पर ही आत्मा में शुभाशुभ का विवेक करने की क्षमता होती है, साथ ही, इसी विवेक- बुद्धि के आधार पर वे वासनाओं का संयमन भी कर सकती हैं। जिन आत्माओं में ऐसी विवेक-क्षमता का अभाव है, उनमें संयम की क्षमता का भी अभाव होता है, इसलिए वे आध्यात्मिक-प्रगति भी नहीं कर सकतीं। नैतिक-जीवन के लिए आत्मा में . जीव - त्रस . स्थावर (एकेन्द्रिय) पृथ्वीकाय * अपकाय तेजस्कायं वायु वनस्पति पंचेन्द्रिय चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय विवेक और संयम- दोनों का होना आवश्यक है और वह केवल उन्हीं में संभव है, जो समनस्क हैं। __यहाँ जैविक-आधार पर भी आत्मा के वर्गीकरण पर विचार अपेक्षित है, क्योंकि जैन धर्म का अहिंसा-सिद्धांत बहुत कुछ इसी पर निर्भर है। - जैविक-आधार पर जीवों (प्राणियों) का वर्गीकरण