________________ जैन धर्म एवं दर्शन-267 जैन- तत्त्वमीमांसा-119 वैज्ञानिकों एवं जैन-आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं हैं। परमाणु या पुद्गल कणों में जिस अनन्तशक्ति का निर्देश जैन-आचार्यों ने किया था, वह अब आधुनिक वैज्ञानिक-अन्वेषणों से सिद्ध हो रही है। आधुनिक वैज्ञानिक इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि एक परमाणु का विस्फोट भी कितनी अधिक शक्ति का सृजन कर सकता है। वैसे भी, भौतिक-पिण्ड या पुद्गल की अवधारणा ऐसी है, जिस पर वैज्ञानिकों एवं जैन-विचारकों में कोई अधिक मतभेद नहीं देखा जाता। परमाणुओं के द्वारा स्कन्ध की रचना का जैन-सिद्धान्त कितना वैज्ञानिक है- इसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। विज्ञान जिसे परमाणु कहता था, वह अब टूट चुका है, वास्तविकता तो यह है कि विज्ञान ने जिसे परमाणु मान लिया था, वह परमाणु था ही नहीं, वह तो स्कन्ध ही था, क्योंकि जैनों की परमाणु की परिभाषा यह है कि जिसका विभाजन नहीं हो सके, ऐसा भौतिक-तत्त्व परमाणु है। इस प्रकार, आज हम देखते हैं कि विज्ञान का तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है, जबकि जैन-दर्शन का परमाणु अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं पाया है। वस्तुतः, जैन-दर्शन में जिसे परमाणु कहा जाता है, उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क नाम दिया है और वे आज भी उसकी खोज में लगे हुए हैं। समकालीन भौतिकी-विदों की क्वार्क की परिभाषा यह है कि जो विश्व का सरलतम और अन्तिम घट है, वही क्वार्क है। आज भी क्वार्क को व्याख्यायित करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो पाये हैं। - आधुनिक विज्ञान प्राचीन अवधारणाओं को सम्पुष्ट करने में किस प्रकार सहायक हुआ है, उसका एक उदाहरण यह है कि जैन-तत्त्व-मीमांसा में एक ओर यह अवधारणा रही है कि एक पुद्गल–परमाणु जितनी जगह घेरता है, वह एक आकाश-प्रदेश कहलाता है। दूसरे शब्दों में, मान्यता यह है कि एक आकाश-प्रदेश में एक परमाणु ही रह सकता है, किन्तु दूसरी ओर, आगमों में यह भी उल्लेख है कि एक आकाशप्रदेश में असंख्यात पुद्गल-परमाणु समा सकते हैं। इस विरोधाभास का सीधा समाधान हमारे पास नहीं था, लेकिन विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व में कुछ ऐसे ठोस द्रव्य हैं, जिनका एक वर्ग इंच का वजन लगभग आठ सौ टन होता है। इससे यह भी फलित होता है कि जिन्हें हम ठोस