________________ जैन धर्म एवं दर्शन-243 जैन-तत्त्वमीमांसा-95 जाने वाले शंख, बाँसुरी आदि का शब्द और 6. संघर्ष- दो वस्तुओं के घर्षण से उत्पन्न किया गया शब्द / इस प्रकार, परस्पर आश्लेषरूप बन्ध के भी प्रायोगिक और वैनसिकये दो भेद हैं। जीव और शरीर का बन्ध तथा लाख आदि से जोड़कर बनाई गई वस्तुओं का बन्ध प्रयत्नसापेक्ष होने से प्रायोगिक-बन्ध है। बिजली, मेघ, इन्द्रधनुष आदि का बन्ध प्राणी के प्रयत्न-निरपेक्ष पौद्गलिक संश्लेष वैस्त्रसिक बन्ध है। सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व के भी अन्त्य तथा आपेक्षिक होने से ये दो-दो प्रकार के भेद हैं। जो सूक्ष्मत्व तथा स्थूलत्व- दोनों एक ही वस्तु में अपेक्षा-भेद से घटित न हों, वे अन्त्य कहे जाते हैं और जो घटित हों, वे आपेक्षिक कहे जाते हैं। परमाणुओं का सूक्ष्मत्व और जगत्-व्यापी महास्कन्ध का स्थूलत्व अन्त्य है, क्योंकि अन्य पुद्गल की अपेक्षा परमाणुओं में स्थूलत्व और महास्कन्ध में सूक्ष्मत्व घटित नहीं होता। द्वयणुक आदि मध्यवर्ती स्कन्धों के सूक्ष्मत्व व स्थूलत्व- दोनों आपेक्षिक हैं, जैसे- आँवले का सूक्ष्मत्व और बिल्व का स्थूलत्व सापेक्षिक हैं, आँवला बिल्व की अपेक्षा छोटा है, अतः सूक्ष्म है और बिल्व आँवले की अपेक्षा बड़ा है, अतः स्थूल है, परन्तु वही आँवला बेर की अपेक्षा बड़ा है, किन्तु वही बिल्व कूष्माण्ड की अपेक्षा छोटा है। इस प्रकार, आपेक्षिक होने से एक ही वस्तु में सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व- दोनों विरुद्ध गुण-धर्म होते हैं, किन्तु अन्त्य-सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व एक वस्तु में एक ही साथ नहीं होते हैं। संस्थान इत्थत्व और अनित्थत्व- दो प्रकार का है। जिस आकार की किसी के साथ तुलना की जा सके वह इत्थत्वरूप है और जिसकी तुलना न की जा सके, वह अनित्थत्वरूप है। मेघ आदि का संस्थान (रचना--विशेष) अनित्थत्वरूप है, क्योंकि अनियत होने से किसी एक प्रकार से उसका निरूपण नहीं किया जा सकता, जबकि अन्य पदार्थों का संस्थान इत्थत्वरूप है, जैसे- गेंद, सिंघाड़ा आदि / गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, दीर्घ, पारिमण्डल (वलयाकार) आदि रूप में इत्थत्वरूप-संस्थान के अनेक भेद हैं। स्कन्धरूप में परिणत पुद्गलपिण्ड का विश्लेषण (विभाग) होना भेद.