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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-242 जैन- तत्त्वमीमांसा-94 स्निग्ध-रुक्ष में से कोई दो स्पर्श पाये जाते हैं। जैन-आगमों में वर्ण पाँच माने गये हैं- लाल, पीला, नीला, सफेद और काला; गंध दो हैं- सुगन्ध और दुर्गन्ध; रस पाँच हैं- तिक्त, कटु, कसैला, खट्टा और मीठा और इसी प्रकार स्पर्श आठ माने गये हैं- शीत और उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष, मृदु और कर्कश तथा हल्का और भारी। इस प्रकार, जैनदर्शन में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-गुणों के बीच भेद माने गये हैं। पुनः, जैनदर्शन इनमें से प्रत्येक में भी उनकी तरतमता. (डिग्री या मात्रा) के आधार पर भेद करता है, उदाहरण के रूप में- वर्ण में लाल, काला आदि वर्ण हैं; किन्तु इनमें भी लालिमा और कालिमा के हल्के, तेज आदि अनेक स्तर देखे जाते हैं। लाल वर्ण एक गुण (डिग्री) लाल से लगाकर संख्यात्, असंख्यात् और अनन्तगुण लाल हो सकता है। यही स्थिति काले आदि अन्य वर्गों की भी होगी। इसी प्रकार, रस में / खट्टा, मीठा आदि रस भी एक ही प्रकार के नहीं होते हैं, उनमें भी तरतमता होती है। मिठास, खटास या सुगन्ध-दुर्गन्ध आदि के भी अनेकानेक स्तर हैं। यही स्थिति उष्ण आदि स्पर्शों की है। नि-दार्शनिकों के अनुसार, उष्मा भी एक गुण (एक डिग्री) से लेकर संख्यात्, असंख्यात् या अनन्त गुण (डिग्री) की हो सकती है। इस प्रकार, जैन-दार्शनिकों ने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श में प्रत्येक- अवान्तर भेद किये हैं, तथा तरतमता या डिग्री के आधार पर उनके अनन्त भेद भी माने हैं। उनका यह दृष्टिकोण आज भी विज्ञानसम्मत है। .. जैन-दार्शनिकों के अनुसार, शब्द भाषावर्गणा के पुद्गलों का एक विशिष्ट प्रकार का परिणाम है। निमित्त-भेद से उसके अनेक भेद माने जाते हैं। जो शब्द जीव या प्राणियों के प्रयत्न से उत्पन्न होता है, वह प्रायोगिक है और जो किसी के प्रयत्न के बिना ही उत्पन्न होता है, वह वैनसिक है, जैसे- बादलों का गर्जन। प्रायोगिक शब्द के मुख्यतः निम्न छह प्रकार हैं- 1. भाषा-मनुष्य आदि की व्यक्त और पशु, पक्षी आदि की अव्यक्त- ऐसी अनेकविध भाषाएँ, 2. तत-चमड़े से लपेटे हुए वाद्यों अर्थात् मृदंग, पटह आदि का शब्द; 3. वितत- तार वाले वीणा, सारंगी आदि वाद्यों का शब्द, 4. घन-झालर, घंट आदि का शब्द; 5. शुफ्रि-फूंककर बजाये
SR No.004420
Book TitleJain Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages152
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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