________________ जैन धर्म एवं दर्शन-440 सापेक्षिक चिह्न जा सक उसे नि सप्त न 48 4.4U जैन ज्ञानमीमांसा-148 अर्थ स्तुत किया. यदि- तो (हेतुफलाश्रित कथन) बने के लिए अपेक्षा (दृष्टिकोण) संयोजन (और) चिहनों का युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य विधेय . . भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण .. 1. स्यात् अस्ति - उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से : विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है। 2. स्यात् नास्ति अ अ वि नहीं है. यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते है तो आत्मा नित्य नहीं है। 3. स्यात् अस्ति नास्ति च अ> उ वि है. . यदि द्रव्य की अपेक्षा से अ उ वि नहीं है. विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से चिार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। 4. स्यात् अवक्तव्य (अ. अ) उ. यदि द्रव्य और पर्याय दोनों अवक्तव्य है. ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दें भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से अलग-अलग कथन है। सकते हैं किन्तु एक का नहीं हो सकता है।)