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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-549 जैन- आचार मीमांसा-81 भोगवादी-दृष्टि है; यह दृष्टि मनुष्य को एक पशु से अधिक नहीं मानती है। यह सत्य है कि यदि मनुष्य मात्र पशु है, तो नीति का कोई अर्थ नहीं है, किन्तु क्या आज मनुष्य का अवमूल्यन पशु के स्तर पर किया जा सकता है? क्या मनुष्य निरा पशु है? यदि मनुष्य निरा पशु होता, तो निश्चय ही उसके लिए नीति की कोई आवश्यकता नहीं होती, किन्तु आज का मनुष्य पशु नहीं है। उसकी सामाजिकता उसके स्वभाव से निस्सृत है, अतः उसके लिए नीति की स्वीकृति आवश्यक है। मार्क्सवाद और जैन-दर्शन सामाजिक न्याय और समता पर बल देते हैं, फिर भी दोनों में कुछ आधारभूत भिन्नताएँ हैं, जिन पर विचार कर लेना आवश्यक है। भौतिक एवं आध्यात्मिक आधारों में अन्तर- मार्क्स नैतिकता की व्याख्या द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर करते हैं, अतः उनके नैतिक-आदर्श के निर्धारण में आध्यात्मिकता का कोई स्थान नहीं है। मार्क्सवाद का आधार भौतिक है, जबकि जैन-दर्शन में नैतिकता का आधार आध्यात्मिकता है। नैतिकता के लिए आध्यात्मिक आधार इसलिए आवश्यक है कि उसके अभाव में नैतिकता के लिए कोई आन्तरिक आधार नहीं मिल पाता है। संकोच, भय, लज्जा और कानून-ये सब अनैतिकता के प्रतिषेध हैं, लेकिन ये बाह्य हैं। उसका वास्तविक प्रतिषेध केवल अध्यात्म ही हो सकता है। अध्यात्म सब प्रतिषेधों का प्रतिषेध है, वह नैतिक-जीवन का सर्वोच्च प्रहरी है। आध्यात्मिकता ही एक ऐसा आधार है, जिसमें नैतिकता बाहर से थोपी नहीं जाती, अपितु अन्दर से विकसित होती है। भौतिकवादं में स्वार्थ के निवारण का कोई वास्तविक आधार नहीं है। आध्यात्मिकता ही एक ऐसा आधार है, जो व्यक्ति को स्वार्थ से पूर्णतया ऊपर उठा सकता है। जहाँ व्यक्ति को भौतिक स्पर्धाओं में से गुजरने की छूट है और भौतिक विकास ही परम लक्ष्य है, वहाँ व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को समाज में विलीन नहीं कर सकता। जब तक व्यक्ति अपने को समाज में विलीन नहीं कर सकता, वह स्वार्थ से ऊपर भी नहीं उठ सकता, अतः नैतिक-जीवन के लिए आध्यात्मिक आधार अपेक्षित हैं। __ आर्थिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण में अन्तर- मार्क्सवादी नैतिक-दर्शन के अनुसार आर्थिक क्रियाएँ ही समग्र मानवीय–चिन्तन और प्रगति की
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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