SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-527 जैन- आचार मीमांसा-59 हैं, तो इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जैन-दर्शन भी एक सुव्यवस्थित समाज-रचना को आवश्यक मानता है। सामाजिक-समकक्षता सामाजिक-समत्व की सूचक है और इस रूप में जैन-दर्शन का अनाग्रह और अपरिग्रह का सिद्धान्त इस सामाजिक-समत्व का संरक्षण करता है। तत्वार्थसूत्र में निर्दिष्ट प्राणियों की सहयोगात्मक प्रकृति भी सामाजिक समत्व की संरक्षक है। बुद्धिपरतावाद और जैन-दर्शन कांट अपने नैतिक सिद्धान्त के प्रतिपादन में भावनाओं को कोई स्थान नहीं देते। उसके अनुसार नैतिक-जीवन का लक्ष्य भावनाओं से ऊपर बुद्धिमय जीवन है। कांट के नीतिशास्त्र में सद्-इच्छा ही परमशुभ है। वे सदिच्छा को सद्भावना नहीं, वरन् कर्तव्यभाव मानते हैं। उनके अनुसार, सदिच्छा या परमशुभ निरपेक्ष है। कांट किसी भावना से प्रेरित कर्म को नैतिक नहीं मानते। उनके अनुसार, कर्म को भावना से नहीं, वरन् बुद्धि से नियन्त्रित होना चाहिए। निष्पक्ष बुद्धि से नियन्त्रित कर्म ही नैतिक हो सकता है। कांट ने नैतिक-आदेश के या कर्म की नैतिकता के प्रतिमान पाँच सूत्र दिए हैं- .. 1. सार्वभौम विधान- तुम केवल उसी नियम का पालन करो, जिसके माध्यम से तुम उसी समय इच्छा कर सको कि यह एक सार्वभौम विधान हो। . . 2. प्रकृति विधान- ऐसा करो, मानो तुम्हारे कर्म का नियम तुम्हारी इच्छा के माध्यम से प्रकृति का एक सार्वभौम विधान होने वाला हो। 3. स्वयंसाध्य- ऐसा करो, जिससे स्वयं के व्यक्तित्व में तथा प्रत्येक अन्य पुरुष के व्यक्तित्व में निहित मानवता को तुम सदा ही साध्य के रूप में प्रयोग करो, साधन के रूप में नहीं / 4. स्वतन्त्रता- ऐसा करो कि तुम्हारी इच्छा उसी समय अपने नियम के माध्यम से अपने को सार्वभौम विधान बनाने वाली समझ सके। 5. साध्यों का राज्य- ऐसा करो, मानो तुम सदा अपने नियम के माध्यम से साध्यों के एक सार्वभौम साध्य के विधायक सदस्य हो। . जैन-दर्शन में कांट के सिद्धान्तों के कुछ सूत्र अवश्य मिल जाते हैं,
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy