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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-704 जैन- आचार मीमांसा-236 प्राप्त करना। . 30. तापनिवृत्ति - गर्मी के निवारण के लिए सचित्त जल एवं पंखे आदि का उपयोग करना। 31. आतुर-स्मरण-कष्ट में अपने कुटुम्बीजनों का स्मरण करना। ___32.-38. मूली, अदरक, कन्द, इक्षुखण्ड, मूल (जड़), कच्चे फल और संचित बीजों का उपयोग करना। ___39-45. सौचंल नमक, सैन्धव नमक, सामान्य नमक, रोमदेशीय नमक, समुद्री नमक एवं पर्वतीय काला नमक का उपयोग करना। 46. धूपन- शरीर, वस्त्र एवं भवन को धूप आदि से सुवासित करना। 47. वमन-मुख में अगुली आदि डालकर अथवा वमन की औषधि लेकर वमन करना। 48. वस्तिकर्म - एनीमा आदि लेकर शौच करना। 49. विरेचन - जुलाब लेना। 50. अंजन - आँखों में अंजन लगाना। 51. दन्त-वर्ण - दांत रंगना। 52. अभ्यंग - व्यायाम करना अथवा कुशती लड़ना। - सामान्य स्थिति में यह बावन प्रकार का आचरण मुनि के लिए वर्जित है (दशवैकालिक अध्ययन 3) / सामाचारी के नियम मुनि के लिए विशेष रूप से पालनीय नियम सामाचारी कहे जाते हैं। सामाचारी का दूसरा अर्थ सम्यक् दिनचर्या भी है। मुनि को अपने दैनिक-जीवन के नियमों के प्रति विशेष रूप से सजग रहना चाहिए। समाचारी दस प्रकार की कही गई है। 1. आवश्यकीय - साधु आवश्यक कार्य होने पर ही उपाश्रय (निवासस्थान) से बाहर जाए। अनावश्यक रूप से आवागमन नहीं करे। 2. नैषैधिकी - उपाश्रय में आने पर यह विचार करे कि मैं बाहर के कार्यो से निवृत्त होकर आया हूँ। अब नितांत आवश्यक कार्य के सिवाय मेरे लिए बाहर जाना निषिद्ध है। 3. आपृच्छना - अपना कोई भी कार्य करने के लिए गुरू एवं
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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