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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-483 जैन- आचार मीमांसा-15 भारतीय और पाश्चात्य-परम्परा में नैतिक-मानदण्ड के सिद्धान्तः एक तुलना 1. सदाचार और दुराचार का अर्थ जब हम सदाचार या नैतिकता के किसी शाश्वत मानदण्ड या नैतिक-प्रतिमान को जानना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि सदाचार का तात्पर्य क्या है और किसे हम सदाचार कहते हैं। शाब्दिक-व्युपत्ति की दृष्टि से सदाचार शब्द सत्+आचार- इन दो शब्दों से मिलकर बना है, अर्थात् जो आचरण सत् या उचित है, वह सदाचार है, लेकिन यह प्रश्न बना रहता है कि सत्.या उचित आचरण क्या है? यद्यपि हम आचरण के कुछ प्रारूपों को सदाचार और कुछ प्रारूपों को दुराचार कहते हैं, किन्तु मूल प्रश्न यह है कि वह कौन-सा तत्त्व है, जो किसी आचरण को सदाचार या दुराचार बना देता है। हम अक्सर यह कहते हैं कि झूठ बोलना, चोरी करना, हिंसा करना, व्यभिचार करना दुराचार है और करुणा, दया, सहानुभूति, ईमानदारी, सत्यवादिता आदि सदाचार हैं, किन्तु वह आधार कौन-सा है, जो इन आचरणों को दुराचार या सदाचार बना देता हैं / चोरी या हिंसा क्यों दुराचार है और ईमानदारी या सत्यवादिता क्यों सदाचार है? यदि हम सत् या उचित के अंग्रेजी पर्याय राईट (right) पर विचार करते हैं, तो यह पाते हैं कि यह शब्द लैटिन Rectus शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- नियमानुसार, अर्थात् जो आचरण नियमानुसार है, वह सदाचार है जो नियमविरुद्ध है, वह दुराचार है। यहाँ नियम से तात्पर्य सामाजिक एवं धार्मिक-नियमों या परम्पराओं से है। भारतीय-परम्परा में भी सदाचार शब्द की ऐसी ही व्याख्या मनुस्मृति में उपलब्ध होती है, मनु का कथन है-.. तस्मिन् देशे य आचार: पारम्पर्यक्रमागतः / वर्णानां सान्तरालानां स सदाचार उच्चते / / 2-18 / / अर्थात्, जिस देश, काल और समाज में जो आचरण परम्परा से चला आता है, वही सदाचार कहा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो परम्परागत आचार के नियम हैं, उनका पालन करना ही सदाचार है। दूसरे 'शब्दों में, जिस देश, काल और समाज में आचरण की जो परम्पराएँ स्वीकृत
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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