________________ जैन धर्म एवं दर्शन-625 जैन- आचार मीमांसा-157 पाश्चात्य-चिन्तन में त्रिविध साधना-पथ - पाश्चात्य-परम्परा में तीन नैतिक आदेश उपलब्ध होते हैं - 1. स्वयं को जानो (Know Thyself), 2. स्वयं को स्वीकार करो (Accept Thyself) और 3. स्वयं ही बन जाओ (Be Thyself) / पाश्चात्य-चिन्तन के तीन आदेश ज्ञान, दर्शन और चारित्र के समकक्ष ही हैं। आत्मज्ञान में ज्ञान का तत्त्व, आत्म-स्वीकृति में श्रद्धा का तत्त्व और आत्मनिर्माण में चारित्र का तत्त्व स्वीकृत ही है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि त्रिविध साधना-मार्ग के विधान में जैन, बौद्ध और वैदिक-परम्पराएं ही नहीं, पाश्चात्य-विचारक भी एकमत हैं / तुलनात्मक रूप में उन्हें निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता हैजैन-दर्शन बौद्ध दर्शन . गीता उपनिषद् पाश्चात्य-दर्शन सम्यग्ज्ञान प्रज्ञा ज्ञान, परिप्रश्न मनन Know Thyself सम्यग्दर्शन श्रद्धा, चित्त, समाधि श्रद्धा, प्रतिपात श्रवण Accept Thyself सम्यक्चारित्र शील, वीर्य . कर्म, सेवा निदिध्यासन BeThyself - साधन-त्रय का परस्पर सम्बन्ध - जैन-आचार्यों ने नैतिक-साधना के लिए इन तीनों साधना-मार्गों को एक साथ स्वीकार किया है। उनके अनुसार, नैतिकसाधना की पूर्णता त्रिविध-साधनापथ के समग्र परिपालन में ही सम्भव है / जैनविचारक तीनों के समवेत से ही मुक्ति मानते हैं। उनके अनुसार, न अकेला ज्ञान, न अकेला कर्म और न अकेली भक्ति मुक्ति देने में समर्थ है, जबकि कुछ भारतीयविचारकों ने इनमें से किसी एक को ही मोक्ष प्राप्ति का साधन मान लिया है। आचार्य शंकर केवल ज्ञान से और रामानुज केवल भक्ति से मुक्ति की संभावना को स्वीकार करते हैं, लेकिन जैन दार्शनिक ऐसी किसी एकान्तवादिता में नहीं पड़ते हैं। उनके अनुसार तो ज्ञान, कर्म और भक्ति की समवेत साधना में ही मोक्ष-सिद्धि संभव है। इनमें से किसी एक के अभाव में मोक्ष या नैतिक-साध्य की प्राप्ति सम्भव नहीं। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता और जिसमें ज्ञान नहीं है, उसका आचरण सम्यक् नहीं होता और सम्यक् आचरण के अभाव में आसक्ति से मुक्त नहीं हुआ जाता है और जो आसक्ति से मुक्त नहीं, उसका निर्वाण या मोक्ष नहीं होता। इस प्रकार, शास्त्रकार यह स्पष्ट कर देता है कि निर्वाण या नैतिक-साध्य के रूप में जिस पूर्णता को स्वीकार किया गया है, वह चेतना के किसी एक पक्ष की पूर्णता नहीं, वरन् तीनों पक्षों - की पूर्णता है और इसके लिए साधना के तीनों पक्ष आवश्यक हैं।