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________________ जैन धर्म एवं दर्शन-570 जैन- आचार मीमांसा -102 कसौटी, वैयक्तिक-रुचि, सामाजिक–अनुमोदन अथवा धर्मशास्त्र की अनुशंसा को मानते हैं। * अन्तः प्रज्ञावाद, अथवा सरल शब्दों में कहें, तो अन्तरात्मा के अनुमोदन का सिद्धान्त भी किसी एक नैतिक-प्रतिमान को दे पाने में असमर्थ हैं। यद्यपि यह कहा जाता है कि अन्तरात्मा के निर्णय सरल, सहज और अपरोक्ष होते हैं, फिर भी अनुभव यही बताता है कि अन्तरात्मा के निर्णयों में एकरूपता नहीं होती। प्रथम तो, स्वयं अन्तःप्रज्ञावादी ही इस सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं कि इस अन्तःप्रज्ञा की प्रकृति क्या है, यह बौद्धिक है या भावनापरक / पुनः, यह मानना कि सभी की अन्तरात्मा एक-सी है, ठीक नहीं है; क्योंकि अन्तरात्मा की संरचना और उसके निर्णय भी व्यक्ति के संस्कारों पर आधारित होते हैं। पशुबलि के सम्बन्ध में मुस्लिम एवं जैन-परिवारों में संस्कारित-ज्योक्तियों के अन्तरात्मा के निर्णय एक समान नहीं होंगे। अन्तरात्मा कोई सरल तथ्य नहीं है, जैसा कि अन्तःप्रज्ञावाद मानता है, अपितु वह विवेकात्मक-चेतना के विकास, पारिवारिक एवं सामाजिक-संस्कारों तथा परिवेशजन्य तथ्यों द्वारा निर्मित एक जटिल रचना है और ये तीनों बातें हमारी अन्तरात्मा को ओर उसके निर्णयों को प्रभावित करती हैं। इसी प्रकार, साध्यवादी-सिद्धान्त भी किसी सार्वभौम नैतिक-मानदण्ड का दावा नहीं कर सके हैं। सर्वप्रथम तो, उनमें इस प्रश्न को लेकर ही मतभेद हैं कि मानव-जीवन का साध्य. क्या हो सकता है? मानवतावादी-विचारक, जो मानवीय-गुण के विकास को ही नैतिकता की कसौटी मानते हैं, इस बात पर सरस्पर सहमत नहीं हैं कि आत्मचेतना, विवेकशीलता और संयम में किसे सर्वोच्च मानवीय-गुण माना जाए। समकालीन मानवतावादियों में जहाँ वारनर फिटे आत्मचेतनता को प्रमुख मानते हैं, वहाँ सी.बी. गर्नेट और इस्राइल लेविन विवेकशीलता को तथा इरविंग बबिट आत्मसंयम को प्रमुख नैतिक-गुण मानते हैं। साध्यवादी-परम्परा के सामने यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण रहा है कि मानवीय-चेतना के ज्ञानात्मक, अनुभूत्यात्मक और संकल्पात्मक-पक्ष में से किसकी सन्तुष्टि को सर्वाधिक महत्व दिया जाए। इस संदर्भ में सुखवाद और बुद्धिवाद का विवाद तो
SR No.004418
Book TitleJain Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages288
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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