________________ प्राकृत का नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन * जिस प्रकार वेदों के शब्दों की व्याख्या के रूप में सर्वप्रथम निरूक्त लिखे गए, सम्भवतः उसी प्रकार जैन परम्परा में आगमों की व्याख्या के लिए सर्वप्रथम नियुक्तियां लिखने का कार्य हुआ। जैन आगमों की व्याख्या के रूप में लिखे गए ग्रंथों में नियुक्तियां प्राचीनतम हैं। आगमिक व्याख्या साहित्य मुख्य रूप से निम्न पांच रूप में विभक्त किया जा सकता है - 1. नियुक्ति, 2. भाष्य, 3. चूर्णि, 4. संस्कृत वृत्तियां एवं टीकाएं और 5. टब्बा अर्थात आगमिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन मरू-गुर्जर में लिखा गयाआगमों का शब्दार्थ। इनके अतिरिक्त सम्प्रति आधुनिक भाषाओं यथा हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी में भी आगमों पर व्याख्याएं लिखी जा रही हैं। सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् शान्टियर उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका में नियुक्ति की परिभाषा को स्पष्ट करतेहुए लिखते हैं कि नियुक्तियां मुख्य रूप से केवल विषय सूची का काम करती हैं। वे सभी विस्तारयुक्त घटनाओं को संक्षेप में उल्लिखित करती हैं।' ___ अनुयोगद्वारसूत्र में नियुक्तियों के तीन विभाग किए गए हैं1. निक्षेप नियुक्ति- इसमें निक्षेपों के आधार पर पारिभाषिक शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया जाता है। 2. उपोद्घात नियुक्ति- इसमें आगम में वर्णित विषय का पूर्व भूमिका के रूप में स्पष्टीकरण किया जाता है। 3. सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति- इसमें आगम की विषय-वस्तु का उल्लेख किया जाता है। प्रो.घाटगेनेइण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली, खण्ड 12, पृ. 270 में नियुक्तियों को निम्न तीन विभागों में विभक्त किया है1. शुद्ध नियुक्तियां- जिनमें काल के प्रभाव से कुछ भी मिश्रण न हुआ हो, जैसे आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां। 2. मिश्रित किंतु व्यवच्छेद्य नियुक्तियां- जिनमें मूलभाष्यों का संमिश्रण हो गया है, तथापि वे व्यवच्छेद्य हैं, जैसे दशवैकालिक और आवश्यकसूत्र की नियुक्तियां। 3. भाष्य मिश्रित-नियुक्तियां- वे नियुक्तियां जो आजकल भाष्य या बृहद्भाष्य में ही समाहित हो गई है और उन दोनों को पृथक-पृथक करना कठिन है जैसे निशीथ आदि की नियुक्तियां। [86]