________________ 84 आगम (श्वे. सम्मत) 1-11 ग्यारह अंग - आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरौपपातिक, प्रश्नव्याकरण और विपाक। 12-23 बारह उपांग - औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीषप्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावंतसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा। अन्तिम पांचों का संयुक्तनाम निरयावलिका है। 24-27 चार मूलसूत्र - आवश्यकसूत्र, दशवैकालिक, उत्तराध्ययनानि, पिंड नियुक्ति (अथवा ओधनिर्यक्ति) 28-29 दो चूलिका सूत्र - नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार। 30-35 छ: छेद सूत्र - निशीथ, महानिशीथ, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध, पंचकल्प (विच्छिन्न)। 36-45 दस प्रकीर्णक-चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान वीरस्तव संस्तारक। (किसी के मत से 'वीरस्तव' और 'देवेन्द्रस्तव' दोनो का समावेश एक में है और संस्तारक' के स्थान में "मरण समाधि' और 'गच्छाचारपयन्ना' है।) कल्पसूत्र (पर्युषण कल्प-जिनचरित, स्थविरावलि, सामाचारी) यतिजीतकल्प (सोमप्रभसूरि). श्राद्धजीतकल्प (धर्मघोषसूरि) पाक्षिकसूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग है) क्षमापनासूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग है) 51 वंदित्तु (आवश्यक सूत्र का अंग है) 52 ऋषिभाषित 53-62 वीस अन्य पयन्ना- अजीवकल्प, गच्छाचार, मरणसमाधि, सिद्धप्राभृत, तीर्थोद्गारिक, आराधनापताका, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरण्डक, 50 [12]