________________ एवं विद्याम्, जिनेन्द्रवर्णी द्वारा रचित जैन दर्शन में पदार्थ विज्ञान, डॉ. मोहनलाल मेहता द्वारा रचित जैनदर्शन, मुनि न्यायविजय जी द्वारा रचित जैनदर्शन प्रमुख आदि ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त जैनधर्मदर्शन के विविध पक्षों के लेकर हिन्दी में पर्याप्त साहित्य की रचना की है। इनमें डॉ. रतनचन्द जैन का शोध प्रबन्ध - जैन दर्शन में निश्चय और व्यवहारनय, एक परिशीलन, पं. कैलाशचन्द्रशास्त्री का जैनन्याय एवं प्रमाण नय निक्षेप प्रकाश, डॉ. सागरमल जैन के जैनभाषादर्शन, जैन दर्शन में द्रव्य गुण और पर्याय, जैन दर्शन का गुणस्थान सिद्धान्त प्रमुख ग्रन्थ है। यहाँ हमने हिन्दी के कुछ ग्रन्थों का उल्लेख किया है, वैसे तो हिन्दी भाषा जैन धर्म एवं दर्शन से सम्बन्धित सैकड़ों ग्रन्थ है। जिनके नामोल्लेख से यह निबन्ध-निबन्ध न रहकर एक ग्रन्थ ही बन जायेगा। इसी क्रम में साध्वी धर्मशिलाजी का नवतत्त्व, मुनि प्रमाणसागरजी का जैन धर्म और दर्शन , साध्वी विघुतप्रभाजी का द्रव्यविज्ञान, समणी मंगलप्रज्ञाजी की आर्हतीदृष्टि भी जैनधर्मदर्शन के प्रमुख ग्रन्थ माने जाते है। हिन्दी भाषा के अतिरिक्त बंगाली, पंजाबी, मराठी और कन्नड भाषाओं में भी आधुनिक युग में जैनधर्मदर्शन से सबंधित कुछ ग्रन्थ प्रकाश में आए है। विस्तार भय से उन सब की चर्चा करना यहाँ सम्भव नहीं है। दार्शनिक समस्याओं के लेकर पं. सुखलालजी के दर्शन और चिन्तन में प्रकाशित कुछ महत्वपूर्ण आलेख भी इस दृष्टि से विचारणीय है। इसी क्रम मे पं. कन्हैयालाल जी लोढा ने भी नव तत्वों पर अलग अलग रूप से स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे हैं। वैसे गुजराती भाषा में भी पर्याप्त रूप से जैन धर्म दर्शन संबधी साहित्य के ग्रन्थ लिखे गये है। किन्तु इस सम्बन्ध में मेरी जानकारी की अल्पता के कारण उन पर विशेष कुछ लिख पाना सम्भव नहीं है। यद्यपि अंग्रेजी भारतीय भाषाओं का एक अंग नहीं है, फिर भी एक विश्व की एक प्रमुख भाषा होने के कारण उसमें भी जैन दर्शन सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते है। उसमें प्रो. नथमल जी टाटीया का जैन स्टडीज डॉ. इन्द्रशास्त्री का जैन एपीस्टोमोलाजे, जे.सी. सिकन्दर का जै थ्योरी आफ रियलीटी, प्रो. बी. आर. जैन का कासमोलाजी ओल्ड एण्ड न्यू आदि कुछ प्रमुख ग्रन्थ माने जा सकते है। यद्यपि आज कुछ मूल ग्रन्थों के अंग्रेजी अनुवाद सहित लगभग पांच सौ अधिक ग्रन्थ अंग्रेजी भाषा में भी उपलब्ध हैंफ्रेंच, ऊर्दू, पंजाबी, बंगाली आदि में क्वचित जैनधर्मदर्शन सम्बन्धी ग्रन्थ उपलब्ध [144]