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________________ है, फिर भी इन्हें अपभ्रंश के दार्शनिक जैन साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है, किन्तु इनकी चर्चा हम प्राकृत के जैन दार्शनिक साहित्य के साथ कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त दिगम्बर जैन परम्परा में स्वयंभू से लेकर मध्य काल तक अनेक पुराणों और काव्य ग्रन्थों की संस्कृत में रचनाए हई हैं। उनमें भी जैन दर्शन की तत्त्वमीमांसा और आचारमीमासा का विवरण हमें मिल जाता है। अन्य भाषाओं में जैन दार्शनिक साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं में जैन दार्शनिक साहित्य का निर्माण हुआ है, उसमें आगमों के टब्बे प्रमुख है। इनमें भी आगमों में वर्णीत दार्शनिक मान्यताओं का मरूगुर्जर भाषा में निर्देश हुआ है। मरूगुर्जर भाषा में जैन दर्शन का कोई विशिष्ट ग्रन्थ लिखा गया है, यह हमारी जानकारी में नहीं है, किन्तु हम सम्भावनाओं से इनकार नही करते है। मरूगुर्जर में जो दार्शनिक चर्चाएँ हुई है, वे प्रायः खण्डन मण्डनात्मक हुई है। इनमें भी अन्य मतों की अपेक्षा जैन धर्म दर्शन की विविध शाखाओं व प्रशाखाओं के पारस्परिक विवादों का ही अधिक उल्लेख है। जहाँ तक पुरानी हिन्दी और आधुनिक हिन्दी का प्रश्न है, उनमें भी पर्याप्त रूप से जैन दार्शनिक साहित्य का निर्माण हुआ हो, किन्तु उनमें से अधिकांश विषय पारस्परिक दार्शनिक अवधारणाओं से संबधित है। इनमें मेरी जानकारी के अनुसार एक प्रमुख ग्रन्थ अमोलकऋषीजी कृत जैन तत्त्व प्रकाश है। यह सर्वागीण रूप से जैन दर्शन के विविध पक्षों की चर्चा करता है। यह सम्भावना है कि उनके द्वारा इस प्रकार के अन्य ग्रन्थ भी लिखे गये होगे, किन्तु उनकी मुझे जानकारी उपलब्ध न होने के कारण उन पर अधिक कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। यद्यपि गुणस्थान सिद्धान्त पर अढीशतद्वारी भी इन्ही का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यहाँ तक आधुनिक हिन्दी में लिखे गये जैन दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें पं. फूलचन्दज द्वारा लिखित जैनतत्त्वमीमांसा एक प्रमुख ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त पं. (डॉ.) दरबारीलालजी कोठिया द्वारा रचित जैनतत्त्व, ज्ञानमीमांसा, पं. सुमेरचन्द दीवाकर द्वारा रचित जैन शासन, पं. दलसुखभाई द्वारा रचित आगमयुग का जैनदर्शन, विजयमुनि जी रचित जैन दर्शन के मूलतत्त्व, आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा जैनदर्शन मनन और मीमांसा, पं. देवेन्द्रमुनि जी द्वारा रचित जैनदर्शन स्वरूप व विश्लेषण एवं जैनदर्शन मनन और मूल्याकंन, पं. महेन्द्रकुमार जी जैन द्वारा रचित जैनदर्शन, मुनि महेन्द्रकुमार द्वारा रचित जैन दर्शन [143]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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