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________________ संस्कृत एवं प्राकृत के व्याकरण सम्बन्धी जैनाचार्यों के संस्कृत ग्रन्थ . भाषा का प्राण व्याकरण है अत: जैन आचार्यों ने प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की। उनके इन व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों का माध्यम संस्कृत भाषा रही। उनके व्याकरण सम्बन्धी ग्रन्थों की सूची अति विस्तृत है, जो निम्नानुसार है- ऐन्द्रव्याकरण, शब्दप्राभृत, क्षपणक-व्याकरण, जैनेन्द्र-व्याकरण, जैनेन्द्रन्यास, जैनेंद्रभाष्य और शब्दावतारन्यास, महावृत्ति, शब्दांभोजभास्करन्यास, पचंवस्तु, लघुजैनेन्द्र, शब्दावर्ण, शब्दार्णवचंद्रिका, शब्दार्णवप्रक्रिया, भगवद्वाग्वादिनी, जैनेन्द्रव्याकरण वृत्ति, अनिट्कारिकावचूरि, शाकटायन-व्याकरण, पाल्यकीर्ति शाकटायन के व्याकरण सम्बन्धी अन्य ग्रन्थ, अमोघवृत्ति आदि चिंतामणिशाकटायनव्याकरणवृत्ति, मणिप्रकाशिका, प्रक्रियासंग्रह, शाकटायन- टीका, रूपसिद्धि, गणरत्नमहोदधि, लिगानुशासन, धातुपाठ, पंचग्रंथी या बुद्धिसागर व्याकरण, दीपकव्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दार्णव्याकरण, शब्दार्णव वृत्ति, विद्यानंदव्याकरण, नूतनव्याकरण, प्रेमलाभव्याकरण, शब्दभूषणव्याकरण, प्रयोगमुखव्याकरण, सिद्धहेमचंद्र शब्दानुशासन, उसकी स्वोपज्ञलघुवृत्ति, स्वोपज्ञमध्यमवृत्ति, रहस्यवृत्ति, बृहदवृत्ति, बृहन्यास, न्याससारसमुद्धार, लघुन्यास, न्याससारोद्धार-टिप्पण, हैमढुंढिका, अष्टाघ्यायतृतीयपदवृत्ति, हैमलघुवृत्ति-अवचूरि, चतुष्कवृत्ति -अवचूरि, लघुवृत्ति अवचूरि, हैमलघुवृत्तिढुंढिका, लघुव्याख्यानढुंढिका, ढुंढिका दीपिका, बृहदवृत्ति सारोद्वार, बृहदवृत्ति अवचूर्णिका, बृहदवृत्तिढुंढिका, बृहदवृत्तिदीपिका, कक्षापटवृत्ति, बृहदवृत्तिटिप्पण, हैमोदाहरणवृत्ति, हैमदशपादविशेष, और हैमदशपादविशेषार्थ, बलाबलसूत्रवृत्ति, क्रियारत्नसमुच्चय, न्यायसग्रंह, स्यादिशब्दसमुच्चय, स्यादिव्याकरण, स्यादिशब्ददीपिका, हेमविभ्रमटीका, कविकल्पद्रुमटीका, तिडन्वयोंक्ति, हैमधातुपारायण, हैमधातुपारायणवृत्ति, हेमलिंगानुशासनवृत्ति, दुर्गमपदप्रबोधवृत्ति, हेमलिंगानुशासन -अवचूरि, गणपाठ, गणविवेक, गणदर्पण, प्रक्रियाग्रन्थ, हैमलघुप्रक्रिया, हैमबृहत्प्रक्रिया, हैमप्रकाश, चंद्रप्रभा, हेमशब्द-प्रक्रिया, हेमशब्दचंन्द्रिका, हैमप्रक्रिया, हैमप्रक्रिया शब्दसमुच्चय, हेमशब्दसमुच्चय, हेमशब्दसचंय, हैमकारकसमुच्चय, सिद्धसारस्वत व्याकरण, उपसर्गमथुन, धातुमंज्जरी, मिश्रलिंगकोश, मिश्रलिंगनिर्णय, लिंगानुशासन, उणादिप्रत्यय, विभक्तिविचार, धातुरत्नाकर, धातुरत्नाकरवृत्ति क्रियाकलाप, अनिट्कारिका, अनिट्कारिकाटीका, [131]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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