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________________ श्वेताम्बर धारा में जैन न्याय और अनेकांतवाद पर आधारित सर्वप्रथम संस्कृत कृति मल्लवादी क्षमाश्रमण का द्वादशारनयचक्र है। ऐसा माना जाता है कि उस पर सिद्धसेन की जो टीका है वह भी संस्कृत में है, किन्तु सिद्धसेन की मुख्य कृति सन्मतितर्क मूलत: प्राकृत भाषा में है। सिद्धसेन की कुछ द्वात्रिंशिकाएँ मिलती है, जो संस्कृत भाषा में निबद्ध है। तत्त्वार्थसूत्र पर श्वेताम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में टीका लिखने वाले सिद्धसेनगणि (7वी शती) है जो सन्मतितर्क के कर्ता सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न है, और 7वीं शती के है। जैन न्याय पर सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में ग्रन्थ लिखने वाले सिद्धसेन दिवाकर है जिन्होने न्यायावतार नामक एक द्वात्रिंशिका संस्कृत भाषा में लिखी है। दिगम्बर परम्परा में पूज्यवाद के पश्चात् अकंलक ने तत्त्वार्थसूत्र पर संस्कृत में राजवार्तिक नामक टीका लिखी साथ ही जैन न्याय के कुछ ग्रन्थों का भी संस्कृत में प्रणयन किया। उनके पश्चात् विद्यानन्द ने श्लोकवार्तिक नाम से तत्त्वार्थसूत्र की टीका संस्कृत श्लोको में लिखी। इसके अतिरिक्त 8वी और 9वी शताब्दी में जैनन्याय पर जो भी ग्रन्थ लिखे गये, वे प्रायः सब संस्कृत भाषा में ही लिखे गये। जैनों के न्याय संबंधी सभी प्रमुख ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे गये, जैन आचार्यों ने निम्न विषयो पर संस्कृत भाषा में अपने ग्रन्थो की रचना की- आगमिक टीकाएँ, वृतियाँ एवं व्याख्याएँ, आगमिक प्रकरण (इस विधा के कुछ ही ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है)। संस्कृत भाषा में जैनों के अनेक स्तुति स्तोत्र आदि भी मिलते है, जैन कर्म सिद्धान्त के कुछ ग्रन्थों की संस्कृत टीकाएँ भी मिलती है, जैनयोग एवं ध्यान के कुछ ग्रन्थ भी संस्कृत में है, यथा शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव, हेमचन्द्र का योगशास्त्र आदि। निर्वाणकलिका, रूपमण्डन एवं समरांगणसूत्रधार आदि जैन कला के अनेक ग्रन्थ संस्कृत में ही है। जैन राजनीति के ग्रन्थ यथा नीतिवाक्यामृत अर्हन्नीति आदि भी संस्कृत में है, जैन तीर्थ मालाएँ, जैन विज्ञान एवं जैन कर्म काण्ड का प्रचुर साहित्य संस्कृत भाषा में ही लिखित है, जैन इतिहास के क्षेत्र में भी प्रबन्धकोश, प्रबन्ध-चिन्तामणि आदि, संस्कृत भाषा के अनेक ग्रन्थ है, इसके अतिरिक्त काव्यशास्त्र, छन्दशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, जैनपुराण एवं जीवनचरित्र, जैनकथासाहित्य (आराधनाकथाकोष आदि), द्वयाश्रयमहाकाव्य, जैननाटक, जैनदूतकाव्य एवं अनेकार्थक ग्रन्थ जैसे - अष्टकक्षी समयसुंदरकृत आदि अनेक ग्रन्थ भी संस्कृत साहित्य के विकास मे जैन कवियों के अवदान के परिचायक है। संस्कृत का जैन आगमिक व्याख्या साहित्य आगमिक व्याख्या साहित्य में विशेषावश्यकभाष्य नामक प्राकृत कृति [123]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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