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________________ हैं किं उस नियुक्ति में जो बोटिक मत के उत्पत्तिकाल एवं स्थल का उल्लेख है, वह प्रक्षिप्त है एवं वे भाष्य गाथाएं हैं। उत्तराध्ययनचूर्णि में एक संकेत यह भी मिलता है कि उसमें निन्हवों की कालसूचक गाथाओं को नियुक्तिगाथाएं न कहकर आख्यान संग्रहणी की गाथा कहा गया है। इससे मेरे उस कथन की पुष्टि होती है कि आवश्यकनियुक्ति में जो निन्हवों के उत्पत्तिनगर एवं उत्पत्तिकाल की सूचक गाथाएं हैं वे मूल में नियुक्ति की गाथाएं नहीं हैं, अपितु संग्रहणी अथवा भाष्य से उसमें प्रक्षिप्त की गई हैं क्योंकि इन गाथाओं में उनके उत्पत्ति नगरों एवं उत्पत्ति-समय दोनों की संख्या आठ-आठ है। इस प्रकार इनमें बोटिकों के उत्पत्तिं नगर और समय का भी उल्लेख है- आश्चर्य यह है कि ये गाथाएं सप्त निन्हवों की चर्चा के बाद दी गई-जबकि बोटिकों की उत्पत्ति का उल्लेख तो इसके भी बाद में है और मात्रा एक गाथा में है। अतः ये गाथाएं किसी भी स्थिति में नियुक्ति की गाथाएं नहीं मानी जा सकती हैं। पुनः यदि हम बोटिक निन्हव सम्बंधी गाथाओं को भी नियुक्ति गाथाएं मान लें तो भी नियुक्ति के रचनाकाल की अपर सीमा को वीरनिर्वाण संवत् 610 अर्थात विक्रम की तीसरी शती के पूर्वार्ध से आगे नहीं ले जाया जा सकता है, क्योंकि इसके बाद के कोई उल्लेख हमें नियुक्तियों में नहीं मिले। यदि नियुक्ति नैमित्तिक भद्रबाहु (विक्रम की छठीं सदी उत्तरार्द्ध) की रचनाएं होती तो उनमें विक्रम की तीसरी सदी से लेकर छठीं सदी के बीच के किसी न किसी आचार्य एवं घटना का उल्लेख भी, चाहे संकेत के रूप में ही क्यों न हो, अवश्य होता।अन्य कुछ नहीं तो माथुरी एवं वलभी वाचना के उल्लेख तो अवश्य ही होते, क्योंकि नैमित्तिक, भद्रबाहु तो उनके बाद ही हुए हैं। वलभी वाचना के आयोजक देवर्द्धिगणि के तो वे कनिष्ठ समकालिक हैं, अतः यदि वे नियुक्ति केकर्ता होते तो वलभी वाचना का उल्लेख नियुक्तियों में अवश्य करते। . 3. यदि नियुक्तियां नैमित्तिक भद्रबाहु (छठीं सदी उत्तरार्द्ध) की कृति होती तो उसमें गुणस्थान की अवधारणा अवश्य ही पाई जाती / छठीं सदी के उत्तरार्द्ध में गुणस्थान की अवधारणा विकसित हो गई थी और उस काल में लिखी गई कृतियों में प्रायः गुणस्थान का उल्लेख मिलता है किंतु जहां तक मुझे ज्ञात है, नियुक्तियों में गुणस्थान सम्बंधी अवधारणा का कहीं भी उल्लेख नहीं है। आवश्यकनियुक्ति की जिन दो गाथाओं में चौदह गुणस्थानों के नामों का उल्लेख मिलता है, वे मूलतः नियुक्ति गाथाएं नहीं हैं। आवश्यक मूलपाठ में चौदह भूतग्रामों (जीव-जातियों) का ही उल्लेख है, गुणस्थानों का नहीं। अतः नियुक्ति तो भूतग्रामों की ही लिखी गई। भूतग्रामों के विवरण के बाद दो गाथाओं में चौदह गुणस्थानों के नाम दिए गए हैं। यद्यपि यहां गुणस्थान शब्द का प्रयोग नहीं है। ये दोनों गाथाएं प्रक्षिप्त हैं, क्योंकि हरिभद्र (आठवीं सदी) ने आवश्यकनियुक्ति की टीका में 'अधुनामुमैव [102]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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