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________________ कर भी लें, तो भी नियुक्तियों में नामपूर्वक वज्रस्वामी को नमस्कार आदि किसी भी दृष्टि से युक्तिसंगत नहीं कहा जा सकता।वे लिखते हैं यदि उपर्युक्त घटनाएं घटित होने के पूर्व ही नियुक्तियों में उल्लिखित कर दी गई हों तो भी अमुक मान्यता अमुक पुरूष द्वारा स्थापित हुई यह कैसे कहा जा सकता है। _____पुनः जिन दस आगम-ग्रंथों पर नियुक्ति लिखने का उल्लेख आवश्यकनियुक्ति में है, उससे यह स्पष्ट है कि भद्रबाहु के समय आचारांग, सूत्रकृतांग आदि अति विस्तृत एवं परिपूर्ण थे। ऐसी स्थिति में उन आगमों पर लिखी गई नियुक्ति भी अतिविशाल एवं चारों अनुयोगमय होनी चाहिए। इसके विरोध में यदि नियुक्तिकार भद्रबाहु थे, ऐसी मान्यता रखने वाले विद्वान यह कहते हैं कि नियुक्तिकार तो भद्रबाहु ही थे और वे नियुक्तियां भी अतिविशाल थीं, किंतु बाद में स्थविर आर्यरक्षित ने अपने शिष्य पुष्यमित्र की विस्मृति एवं भविष्य में होने वाले शिष्यों की मंद-बुद्धि को ध्यान में रखकर जिस प्रकार आगमों के अनुयोगों को पृथक किया, उसी प्रकार नियुक्तियों को भी व्यवस्थित एवं संक्षिप्त किया। इसके प्रत्युत्तर में मुनि श्री पुण्यविजयजी का कथन है- प्रथम, तो यह कि आर्यरक्षित द्वारा अनुयोगों के पृथक करने की बात तो कही जाती है, किंतु नियुक्तियों को व्यवस्थित करने का एक भी उल्लेख नहीं है। स्कंदिल आदि ने विभिन्न वाचनाओं में आगमों को ही व्यवस्थित किया, नियुक्तियों को नहीं। दूसरे, उपलब्ध नियुक्तियां उन अंग-आगमों पर नहीं है जो भद्रबाहु प्रथम के युग में थे। परम्परागत मान्यता के अनुसार आरक्षित के युग में भी आचारांग एवं सूत्रकृतांग उतने ही विशालथे, जितने भद्रबाहु के काल में थे। ऐसी स्थिति में चाहे एक ही अनुयोग का अनुसरण करके नियुक्तियां लिखी गई हों, उनकी विषय-वस्तु तो विशाल होनी चाहिए थी। जबकि जो भी नियुक्तियां उपलब्ध हैं वे सभी माथुरीवाचना द्वारा या वलभी वाचना द्वारा निर्धारित पाठवाले आगमों का ही अनुसरण कर रही हैं। यदि यह कहा जाए कि अनुयोगों का प्रथक्करण करते समय आर्यरक्षित नेनियुक्तियों को भी पुनः व्यवस्थित किया और उनमें अनेक गाथाएं प्रक्षिप्त भी की, तो प्रश्न होता है कि फिर उनमें गोष्ठामाहिल और बोटिक मत की उत्पत्ति सम्बंधी विवरण कैसे आए, क्योंकि इन दोनों की उत्पत्ति आर्यरक्षित के स्वर्गवास के पश्चात ही हुई है। ___ यद्यपि इस संदर्भ में मेरा मुनिश्री से मतभेद है। मेरेअध्ययन की दृष्टि से सप्त निन्हवों के उल्लेख वाली गाथाएं तो मूल गाथाएं हैं, किंतु उनमें बोटिक मत के उत्पत्ति स्थल रथवीरपुर एवं उत्पत्तिकाल वीर नि.सं. 609 का उल्लेख करने वाली गाथाएं बाद में प्रक्षिप्त हैं। वे नियुक्ति की गाथाएं न होकर भाष्य की हैं, क्योंकि जहां निन्हवों एवं उनके मतों का [97]
SR No.004417
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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