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________________ आगम निबंधमाला वृक्ष होता है / (9) ब्रह्मा सोते हैं तब जगत का प्रलय हो जाता है / (10) मृतक की इच्छा पूर्ति नहीं होती तब तक वह प्रेतात्मा रूप में यहीं भटकता है / (11) जो जैसा है वैसा ही बनता है / त्रस जीव, त्रस ही रहता है, स्थावर जीव स्थावर ही रहता है / वैसे ही स्त्री, पुरुष, मनुष्य, गाय, पक्षी आदि जो जैसा है मर कर वैसा ही बनता है। दूसरे रूप को धारण नहीं करता / स्त्री मरकर स्त्री ही बनती / गाय मर कर गाय ही बनती / इत्यादि अनेक तरह की किंवदंतियाँ चल जाती है, चला दी जाती है। .. बिना प्रमाण की या विसंगत-असंगत मान्यताएँ उपादेय नहीं हो सकती है / लोकवाद में सेकडों बातों का समावेश हो सकता है। उनमें सत्य या ग्राह्य भी कोई हो सकती है। परंतु बहुलता भ्रामक तत्त्वों की ही होती है / अत: आत्मकल्याण के साधक को आगम प्रमाण से प्रमाणित और कल्याणकारी तत्त्वों की ही शोध करनी चाहिये / लोकवाद में नहीं बह जाना चाहिये / निबंध-४१ साधुओं के 36 अनाचार सूयगडांग सूत्र से प्रारंभ में दो गाथाओं में जीवों के भेद संकलन के साथ प्रथम महाव्रत के पालन का संदेश देकर तीसरी गाथा में चारों महाव्रतों के पालन की एक साथ सूचना की गई है फिर अनेक गाथाओं में साधक को विद्वान शब्द से उत्साहित करके संयम के उत्तरगुण संबंधी दोषों से दूर रहने का एवं उनका त्याग करने का संदेश दिया गया है, वे विषय ये हैं- सर्व प्रथम कर्माश्रव करने वाले चार कषायों को जानकर उनका त्याग करने का विद्वान साधक को सूचन किया गया है / इन चारों ही कषायों के चार नये पर्याय नाम से उन्हें कहा गया है, यथा- पलिउंचणं= माया, भयणं-लोभ, थंडिलं गुस्सा, उश्रयण मान / साध्वाचार संबंधी अनाचरणीय विषयों का संकेत इस प्रकार है- (1) वस्त्र धोना-रंगना (नील लगाना) (2) एनिमा लेना (3) विरेचन-जुलाब (4) वमन (5) अंजन (6) इत्र-तेल (7) माला (8) स्नान (9) दंतप्रक्षालन / (परिग्रह और कुशील त्याग भी यहाँ गाथा क्रम में मूलगुण कहे हैं / ) (10) / 85
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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