________________ आगम निबंधमाला निबंध-३१ कुंभी पक्व फल इस अध्ययन के आठवें उद्देशक में अनेक प्रकार के कुम्भीपक्व फलों के नाम कहकर कुम्भीपक्व विशेषण लगाकर उन फलों को अनेषणीय अप्रासुक कहा है। इसकी टीका में आचार्य शीलांक ने कुम्भीपक्व फलों को पकाने की विधि बताकर कहा है कि इस प्रकार धुंए और ताप से फल का गिर भाग पकता है किंतु वे फल या उनके बीज अचित्त नहीं हो जाते / अत: ये कुम्भीपक्व फल अप्रासुक अनेषणीय रहते हैं / निबंध-३२ . आहारपानी परठने की विधि : परठने योग्य आहार कई प्रकार का होता है यथा- सचित्त, रसचलित, त्रस जीव मिश्रित, शस्त्र परिणत की अपेक्षा मिश्र(संचित्त), निर्दोष अचित्त अतिमात्रा में आया हुआ, शय्यातरपिंड, आधाकर्मी आदि विशेष दोष युक्त, विष युक्त, अखाद्य पदार्थ मिश्रित, प्रत्याख्यान वाले पदार्थ एवं लीलन फूलन युक्त पदार्थ / इन सभी की परठने की विधि इस प्रकार है- (1) विष युक्त या रोग पैदा करने वाले खराब पदार्थ अचित्त हो तो धूल रेत या राख आदि अचित्त पदार्थ में मिलाकर परठकर ऊपर से भी राख रेत आदि से ढक दिये जाते हैं / (2) सचित्त, रसचलित, लीलन फूलन से युक्त पदार्थ को रेत राख आदि किसी में नहीं मिलाया जाता किंतु इन पदार्थों के जीवों की हिंसा का अधिकतम बचाव संभव हो, उस तरह पोलार वाले स्थानों में, जैसे कि पत्थर खंडहर के ढेर, अन्य किसी प्रकार के ढेर में, जिस में बीच-बीच में जगह हो, कांटों की वाड में इत्यादि स्थलों में विवेक से परठा जाता है (3) त्रस जीव मिश्रित खाद्यपदार्थ एकांत या दिवाल के पास परठे जाते हैं जिससे कि जीवों पर किसी का पाँव नहीं आवे, वे जीव चलकर निकलकर दिवाल के सहारे सुरक्षित बैठ सके, जा सके और उन्हें छाँया भी मिल सके / धूप में या शीघ्र धूप आने वाली हो ऐसी जगह में त्रस जीव युक्त पदार्थ नहीं परठे जाते / जिस खाद्य पदार्थ में त्रस जीव निकल कर साफ हो सकते हों, वे नहीं