________________ आगम निबंधमाला जिस प्रकार किसी ने दीपक को बुझाया तो जीव मरे और किसी ने दीपक जला दिया वह एक स्थान पर स्थिर पडा है, ट्यबलाइट चाल कर दी, यहाँ पर अग्नि के जीव आकर उत्पन्न हुए / दोनों ही व्यक्ति अग्निकाय की विराधना करने वाले गिने जाते हैं / जीवों की उत्पत्ति भी मृत्यु की निमित्तक है / उन जीवों के जन्म से ही वहाँ मरण की परम्परा चालू हो जाती है / जब तक वह दीपक या ट्यूबलाइट जलते रहेंगे, जीव वहाँ जन्मते रहेंगे, मरते रहेंगे / इस निमित्त और परम्परा के प्रवाह के कारण अग्नि जलाने वाला, दीपक ट्यूब लाइट जलाने वाला भी अग्निकाय की विराधना करने वाला गिना जाता है / वहाँ मच्छर, पतंगा आदि त्रस जीव उत्पन्न होकर मरते हैं, तो वह अग्नि जलाने वाला उन त्रस जीवों की भी विराधना करने वाला गिना जाता है / क्यों कि यदि उसने ट्यूबलाइट नहीं जलाई होती तो सेकडों हजारों मच्छर वहाँ नहीं मरते, जलाई है तभी सेकड़ों हजारों त्रस जीव जन्मे और मरे / किसी ने एक बर्तन में या पत्थर के खड्डे में पेशाब कर दिया पूर्ण बंद वाडे में टट्टी पेशाब कर दिया। अन्तर्मुहूर्त बाद वहाँ संमूर्छिम मनुष्यों की उत्पत्ति हुई, जन्म मरण चालू हुआ, तो वह इस अविवेक को करने वाला संमूर्छिम मनुष्यों की विराधना करने वाला गिना जायेगा, परंपरा से विराधना तथा जन्म मरण का निमित्त होने से / जब कि व्यक्ति पुनः वहाँ आकर कभी उन जीवों को स्पर्श भी नहीं करता है, किसी प्रकार से उन जीवों को कष्ट भी नहीं पहुंचाता है। इस प्रकार आगम में विराधना करने वाला दो अपेक्षाओं से गिना गया है / ठीक इसी तरह वायुकाय के जीवों की विराधना भी दो तरह से गिनी जाती है- (1) हम कोई भी काया की या वचन की अथवा कोई भी योग स्पंदन की प्रवृत्ति करते हैं, उसमें वायुकाच की विराधना होती है / वायुकाय के जीव सर्वत्र पोलार स्थान में भरे ही होते हैं / वे हमारी हर स्पंदन प्रवृत्ति से मरते ही रहते हैं। क्योंकि बादर एकेन्द्रिय जीव ऐसे ही शरीर नाम कर्म वाले होते हैं कि स्पर्श मात्र से उन्हें अत्यंत वेदना होती है और अनेकों हजारों या असंख्य जीव भी स्पर्श करन मात्र से मरते रहते हैं / अत: जहाँ भी हन वायुकाय में रहते हैं, हमारा / 56