________________ आगम निबंधमाला कभी सचित्त जल भूल से आ जाय तो उसे दाता को वापिस किया जा सकता है / वैसे ही भूल से किसी वस्तु के साथ सचित्त पदार्थ पात्र में गिर जाय अथवा कोई अविवेक से डाल दे तो उसी समय वापिस किया जा सकता है / शक्कर की जगह पीसा हुआ सचित्त नमक आ जाय तो वापिस दिया जा सकता है / ये पदार्थ दाता वापस लेना नहीं चाहे तो परठने की विधि से परठ दिया जाता है अर्थात् पानी को जलीय स्थान के निकट या पात्र सहित परठ दिया जाता है / अन्य सचित्त पदार्थ और लीलन फूलन भी एकांत में, पोलार में, कांटो की वाड आदि में परठ दिया जा सकता हैं / नि:शंक अचित्त शुद्ध आहार हो तो ही खाना कल्पता है / अग्नि पर चढ ज़ाने के बाद भी पदार्थ की अकल्प्यता :- सिंग की कच्ची फलियाँ, ताजे कच्चे अनाज के सिट्टे और मकाई के भुट्टे वगैरह अग्नि पर रख कर सेके जाते हैं / ये थोडे से सेके हो, बारम्बार घुमाकर नहीं सेके हो तो अग्राह्य होते हैं / अधिक समय अग्नि पर रखकर बारम्बार घुमाकर सेके हों तो पूर्ण अचित्त बने ये पदार्थ कभी आवश्यक होने पर ग्रहण किये जा सकते हैं / उज्झित- धर्मा हो तो ग्रहण नहीं करना अर्थात् फेंकने योग्य पदार्थ गृहस्थ ने स्वयं निकाल दिये हों तो ग्राह्य होते हैं / इस प्रकार प्रत्यक्ष अग्नि पर सीधे रखे पदार्थ का सचित्त या मिश्र रह सकना इस अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सूचित किया गया है। जो पदार्थ अग्नि पर बर्तन में चढाकर और शीघ्र हटा लिये हो वे भी अग्राह्य, मिश्र सचित्त रह सकते हैं / केवल धुंआ देकर पकाये गये पदार्थ भी अचित्त नहीं माने जा सकते। क्यों कि जब अग्नि पर सीधे रखे पदार्थ भी पूरे तप्त नहीं हो जाने से मिश्र रहते हैं तो मात्र धूंए से पकने वाले पदार्थ अचित्त मान लेना योग्य नहीं होता है / व . सचित्त रह सकते हैं और उनमें बीज भी सचित्त ही रहते हैं / निबंध-२५ दान पिंड और दान कुल जो आहार केवल याचकों को दिया जाता है, घरवाले या अन्य गृहस्थ वहाँ बैठकर नहीं खाते हैं / वह पिंड अग्राह्य होता है / [ 51 /