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________________ आगम निबंधमाला भी उन्हें धोना आवश्यक होने पर उसे सुखाना हो तो योग्य स्थलों पर सुखाना, अयोग्य जगह पर नहीं सुखाना / / निशीथ सूत्र में प्रायश्चित्त विधानों में समस्त प्रकार से वस्त्र धोने मात्र का प्रायश्चित्त नहीं कहकर, विभूषा के लिये वस्त्र आदि धोने का प्रायश्चित्त कहा है। उससे भी वस्त्र धोने का एकांत निषेध नहीं होता है। अत: जो निषेध है वह नये ग्रहण करते समय विवेक से ग्रहण करने की सूचना के आशय से है। सामान्य विधान और वस्त्रधारी साधु के प्रसंग के सूत्र को जिनकल्पी के लिये कह देना भी अप्रासंगिक होता है / निबंध-२३ बाह्य साधना और आभ्यंतर साधना एक चिंतन .. आचा.आठवें अध्ययन के पाँचवें, छटे और सातवें उद्देशक में आहार संबंधी अभिग्रह का वर्णन है तथा चौथे से सातवें तक चारों उद्देशकों के प्रारंभ में वस्त्र संबंधी अभिग्रह का वर्णन है / ये अभिग्रह स्थूल दृष्टि से बाह्यतप ऊणोदरी और वृत्ति संक्षेप तप में समाविष्ट होते हैं तथापि इनके साथ जो सहिष्णुता, लोक प्रवाह या लोकरुचि त्याग, शरीर के प्रति मोह त्याग एवं निस्पृहता, सुखैषिता का त्याग एवं जिनाज्ञा में रमणता आदि से परिमाणों की विशुद्धि एवं आर्त रौद्र ध्यान से रहित होकर धर्म शुक्लध्यान में ही आत्मा का लगे रहना, साथ ही अभिग्रहधारी उन साधकों का रात-दिन अप्रमाद भाव से स्वाध्याय तथा कायोत्सर्ग में लगे रहना इत्यादि अनेक आभ्यंतर तप साधनाएँ होती है / कर्मों से मुक्त होने का मुख्य लक्ष्य होने से वे अभिग्रहधारी उच्चकोटि के श्रमण निरंतर महान कर्मों की निर्जरा करते हुए विमोक्ष नामक इस अध्ययन में सूचित ये संपूर्ण कर्म विमोक्ष कराने वाली साधनाएँ करते हैं / जो स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों दृष्टियों से देखने पर द्रव्य-भाव उभयात्मक साधना वाली प्रवृत्तियाँ हैं,साधनाए हैं, ऐसा समझना एवं श्रद्धा करना चाहिये / किंतु केवल एक ही दृष्टि से देखकर सोचकर, बाह्य प्रवृत्ति मात्र है, ऐसा कह कर, इन उत्तम विमोक्ष दायक साधनाओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये / ये साधनाएँ स्थूल दृष्टि से बाह्य दिखते हुए भी, शरीर के प्रति आसक्ति, ममत्व को घटाने
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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