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________________ आगम निबंधमाला साधकों को वस्त्र ग्रहण करने के बाद, उसे है जैसा ही अर्थात् मिला जैसा ही उपयोग में लेना होता है / धोना, सीना या नील आदि पदार्थ लगाना वगैरह कोई भी वस्त्र परिकर्म वे नहीं कर सकते / सामान्य साधु भी वस्त्रों को रंगते नहीं है तो अभिग्रहधारी साधुओं को वस्त्र रंगने का कोई कारण नहीं होता। अत: वस्त्र धोने के साथ जो रंगने का संकेत है वह धोने के बाद सफेदी या नील, आदि पदार्थ लगाये जाते हैं उन्हें ही यहाँ 'रंगने' शब्द से कहा गया है। .. इन रखे गये वस्त्रों पर वे साधक किसी भी प्रकार का ममत्व नहीं रखते एवं चोरी आदि के भय से उन्हें छिपाकर के भी नहीं रखते / वस्त्रों को धोने या रंगने की सूत्राज्ञा का आशय :- इस अध्ययन में वस्त्र को धोने रंगने का निषेध और विधि भी कही है। इनका सूत्राशय और सूत्राज्ञा इस प्रकार समझना चाहिये- जब साधु वस्त्र को ग्रहण करता है तब उसे शक्य 'और सुलभ स्थिति में ऐसे ही विवेक से वस्त्र लेना चाहिये कि वह वस्त्र, ग्रहण करके सीधा उपयोग में लिया जा सके / वस्त्र को लेते ही उसके संबंधी परिकर्म धोना आदि या सीवन आदि न करना पडे ऐसा ध्यान रखकर वस्त्र लेना / इसी कारण जहाँ वस्त्र नया ग्रहण करने का विधान किया जाता है वहीं पर न धोएज्जा, न रएज्जा पाठ रहता है अर्थात् जैसा तैसा वस्त्र ले लेना फिर उसे धोना या नील वगैरह लगाकर दाग आदि को नहीं दिखने योग्य बनाना, ऐसी प्रवृत्ति सामान्यत: नहीं करनी पडे, यह विवेक अवश्य रखना चाहिये। यह आशय सूत्रकार का स्पष्ट रूप से और सही रूप से समझने योग्य है। सामान्य और स्थविरकल्पी साधुओं को वस्त्र धोने का सर्वथा निषेध करने का सूत्रकार का आशय नहीं है / वस्त्र ग्रहण के बाद के सत्रों में प्रथम उद्देशक में स्पष्ट कर दिया गया है कि ग्रहण करने के बाद 'मुझे वस्त्र पुराना और अमनोज्ञ गंध वाला मिला है' ऐसा सोचकर अल्प या अधिक परिमाण में वस्त्र धोना, सुगंधित करना आदि प्रवृत्ति नहीं करे / ऐसा निषेध करने के बाद फिर वस्त्र कहाँ नहीं सुखाना, इसकी विधि कही है, जिसका तात्पर्य स्पष्ट है कि पहनने योग्य वस्त्र उपयोग में लेने के बाद कभी
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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