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________________ आगम निबंधमाला है तो मुझे उस एक तिहाई अवशेष अवधि में, अमुक उम्र में, अमुक समय संथारा कर लेना है / उसके पहले सभी प्रवृत्तिओं की यथासमय निवृति करके संलेखना एक दो वर्ष यावत् 12 वर्ष करने का द्रढ भाव बना लेना है / यदि आयुष्य अपनी उस सोच से 1-2-4-10 वर्ष अधिक हो तो भी संथारे के परम त्याग तप से 5-10 दिन या महीने, दो महीने, तीन महीने में उदीरणा होकर पूर्ण होना ही है / मुझे मृत्युंजय बन कर परम शांति और सुख का रस्ता लेना ही है / वृद्धावस्था और मरण के विचित्र दुखों में नहीं झूलना है / ऐसी स्थितियाँ दिखते ही आगम आज्ञा (तप करने की) स्वीकार कर लेनी है / अस्पतालों के चक्कर कभी काटना नहीं है, यही मेरा जिनशासन का ज्ञान मिलने के परम सौभाग्य का सच्चा फल होगा। इसके लिये मुझे जीवन में तप का अभ्यास और उसका आनंद जरूर लेते रहना है, अनाहारीपन का अभ्यास-अनुभव करते रहना है / बस, इसी प्रेरणा को सभी साधक पावें, परम वैराग्य शूरवीरता में झूमे, ऐसा मेरा उक्त प्रगटीकरण का उद्देश्य है ; साथ ही ऐसा करने में मेरी खुद की द्रढता, हिम्मत भी दिन-दुगुनी, रात चौगुनी द्रढ -सुद्रढ बने, फल स्वरूप में आराधक बनूँ / मेरे इस प्रगटीकरण से (निबंधमाला के दो भागों में) अनेकों की आत्मा को परम आनंद और निजात्म प्रेरणा मिली भी है / एक श्वे.मू.पूजक संत ने भी 2-4 वर्ष बाद के लिये अर्थात् 2018 के लिये मुझे भी ऐसा ही करना, द्रढ संकल्पित मन बनाया है / और कई श्रावक भी ऐसी स्टेज हमको भी पाना जरूरी है, जीवन का श्रेय और अनुपम लाभ यही है, हमें भी ऐसा ही करना है, ऐसी सोच बनाने लगे हैं, समझने लगे है / तथा जो साधक लोग बुढापा और मृत्यु के समय (अनेक वर्षों की साधना में भी असावधान दशा के कारण) भक्तों की भक्ति में कुमरण से मरते है और बाहर लोग शांति का दिखावा करते हैं, हमे ऐसा नहीं जीना है, नहीं करना है ऐसा मनोसंकल्प करने लगे हैं // इति शुभम् सर्व साधकानाम् // 00000 | 254
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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