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________________ आगम निबंधमाला मेरा हाथ देखिए मैं 70 वर्ष की उम्र में समाधि लेने वाला हूँ। उसने हाथ देखकर बता दिया कि आपका जीवन एक अलौकिक महान पुरुष का जीवन है और उम्र आपकी 74 वर्ष के करीब है, आप क्रमिक सात्विक जीवन से चलें तो / अन्यथा 2-4 वर्ष उम्र कम भी हो सकती है / आपका प्रावधान योग्य है किन्तु मेरी अपनी सज्जनता की सलाह यह है कि मानव जीवन से आप सत्कार्य करते हैं, संत-संतियों को इस उम्र में बिना वेतन के पढाने की सेवा देते हैं, तो मानव जीवन को ढूंकाना नहीं चाहिये / इस जीवन से समाज सेवा जितनी हो सके उतनी करनी चाहिये। मैने पूछा- फिर भी मेरी भावना अपने क्षयोपशमिक ज्ञान के अनुसार ऐसी निश्चित की है इसमें कुछ गलत तो नहीं है ? तो कहा आप तो खुद एक अलौकिक ज्ञानी पुरुष हो आपके निर्णय को गलत कहने जैसा कुछ भी नहीं है / मैं जय जिनेन्द्र, धन्यवाद कह कर उठ गया। उसने कोई फीस भी नहीं मांगी / बाहर अनेक लोग बैठे थे मैं घर आ गया / पुस्तक में इस विचारों को छपाने का निर्णय कर लिया। बोम्बे के राजस्थानी एक श्रध्धालु श्रावक को फोन से फिर समझाया / उसको नहीं झुंचने पर आखीर वह प्रत्यक्ष अहमदाबाद आ कर मिला। घंटा भर चर्चा हुई, तब उसके समज मे आ गया / श्रध्धा से मेरी हिम्मत की प्रशस्ति करी और खाता नंबर लिया मुंबई जाकर 11000/- खाते मे डाल दिया। आगम ज्ञान से सोपक्रमी आयुष्य, 1/3 भाग उम्र बचने पर टूट सकता है / आगम आयुष्य गणित से 70 वर्ष की हमारी उम्र में 14 महीने बढने के और 9 महिने गर्भ के जोड़ने पर 23 महिने अर्थात् करीब 2 वर्ष होते हे अत: 70+2=72 वर्ष मेरी कुंडली में लिखा वाला हो जाता है / / उपरोक्त सभी अपेक्षा अनुभवों से और अकेले का जीवन होने से समय के पहले सावधानी के साथ स्वस्थ हालत में संथारा प्राप्त करना श्रेष्ठ समझ में आता है / फिर भी निश्चित करी अवधि के पूर्व भी बीच में कभी कोई उपक्रम का आभास लगे तो कभी भी | 251]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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