________________ आगम निबंधमाला देने से, शोक कराने से, विषाद-खेद कराने से, विलाप कराने से, मारपीट करने से एवं परिताप-कष्ट पहुँचाने से / (7-12) अनेक जीवों को अथवा वारंवार दु:ख आदि देने से / / (4) मोहनीय कर्म- (1-4) तीव्र क्रोध-मान-माया-लोभ का सेवन करने से / (5) दर्शनमोहनीय की तीव्र उदय प्रवृत्ति से / (6) चारित्रमोह की तीव्र उदय प्रवृत्ति से; यो 6 प्रकार से विशिष्ट मोहनीय कर्म का बंध होता है / सामान्यतः प्रायः कषाय के उदय मात्र से मोहनीय कर्मबंध होता रहता है। (5) आयुष्य कर्म- चार-चार कारणों से चारों गति के आयुष्य का बंध होता है / स्थानांग-४ में देखे / (6) नाम कर्म- काया की, भाषा की, भावों की सरलता से तथा अविसंवाद योग वृत्ति से शुभनाम कर्मका बंध होता है / तीनों की वक्रता और विसंवाद योग से अशुभनाम कर्म का बंध होता है / (7) गौत्र कर्म- आठ प्रकार का अभिमान करने से नीच गौत्र का बंध होता है और आठ प्रकार का मद अभिमान नहीं करने से ऊँच गौत्र का बंध होता है। (8) अंतराय कर्म- दान, लाभ, भोग, उपभोग की प्रवृत्ति में एवं वीर्य-शक्ति के पराक्रम करने में; यों इन पाँचों में अंतराय देने से उस-उस प्रकार के दानादिरूप अंतराय कर्म का बंध होता है / / ___एक-एक कर्म प्रकृति के बंध में अनंत परमाणु पुद्गल लगे हुए होते हैं / प्रत्येक आत्मप्रदेश पर अनंत अनंत कर्म वर्गणा आवृत्त परिवेष्टित होती है / 24 दंडक में आठों कर्म होते हैं मनुष्य में चरम शरीरी की अपेक्षा आठ या सात या चार कर्म परिवेष्टित होते हैं / कर्मों में कर्म की भजना नियमा- (1) ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय और अंतराय कर्म में खुद के सिवाय 6 कर्म की नियमा मोहनीय की भजना / (2) मोहनीय कर्म में खुद के सिवाय सात कर्म की नियमा। (3) वेदनीय आदि चारों अघाति कमों में खुद के सिवाय तीन अघाती कर्मों की नियमा, चार घाती कर्मों की भजना होती है / जिस कर्म L.234