________________ आगम निबंधमाला (1) ज्ञानावरणीय कर्म- 1. प्रत्यनीकता-विरोधभाव / मति आदि पाँच ज्ञान, ज्ञानी एवं श्रुतज्ञान के साधन आगमशास्त्र आदि के प्रति विरोध भाव रखने से, विरोध करने से या उनके विरुद्ध आचरण करने से / 2. अपलाप- ज्ञान, ज्ञानीपुरुष एवं श्रुतज्ञान के साधनों के प्रति श्रद्धाभाव, बहुमान या आदर भाव नहीं रखकर अविवेक, तिरस्कार या निंदा के आचरण करने से / 3. अंतराय- किसी की ज्ञान वृद्धि में या ज्ञान के प्रचार में बाधक बनने से। 4. प्रद्वेष- ज्ञानी के प्रति ईर्ष्या भाव, मत्सरभाव, कषायभाव एवं कषाय युक्त व्यवहार करने से / 5. आशातना- मन से वचन से एवं काया से विनय भक्ति नहीं करके अविनय आशातना करने से, कटुवचन बोलने से, उन्हें संताप या कष्ट पहुँचाने से / 6. विसंवाद- ज्ञानी के साथ बात-बात में खोटे झगडे, बहस एवं असंगत-उटपटांग विवाद-चर्चा करने से जीव ज्ञानावरणीय कर्मों का विशेष बंध करता है / सामान्यतः अज्ञानमय संस्कार से एकेन्द्रिय आदि सभी जीव ज्ञानावरणीय कर्मों का निरंतर बंध करते रहते हैं / (2) दर्शनावरणीय कर्म- चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलदर्शनी के प्रति पूर्वोक्त 6 दूषित व्यवहार करने से एवं निद्रा आदि में अंतराय आदि देने से अर्थात् चक्षुदर्शनी आदि के साथ विरोधभाव आदि उपरोक्त 6 अवगुणमय आचरण करने से दर्शनावरणीय कर्म का बंध होता है। (3) वेदनीय कर्म- इसके दो विभाग हैं- शातावेदनीय और अशाता वेदनीय / शातावेदनीयबंध के 10 कारण है- (1-4) प्राण-भूतजीव-सत्व की अनुकंपा करने से / (5) इन्हें दु:ख नहीं पहुँचाने से / (6) शोक उत्पन्न नहीं करने से / (7) इन्हें चिंता नहीं कराने से, आँसु नहीं टपकवाने से, विषाद-खेद नहीं करवाने से / (8) विलाप एवं रुदन आदि नहीं करवाने से / (9) मार-पीट नहीं करने से / (10) परिताप कष्ट नहीं पहुँचाने से / संक्षेप में अन्य जीवों को किसी भी प्रकार से दु:ख नहीं पहुँचाकर सुख पहुँचाने से शाता वेदनीय कर्म का बंध होता है / ___ अशातावेदनीय बंध के 12 कारण है- (1-6) अन्य को दु:ख | 233| -