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________________ आगम निबंधमाला तथा साधु संपदा, आचार संपदा आदि से प्रभावित मानस से वह शुभ चिंतन, शुभ अध्यवसायों से देवगति में भी सम्यग्दृष्टि बन सकता है और सम्यग्दृष्टि हो जाने पर भगवान के दर्शन करने जाने का भाव सहज हो सकता है। __ परंपरा में ऐसा भी माना जाता है कि पादपोपगमन संथारे के समय पिछले दिनों कभी उसने उधर से जाते-आते ईर्या समिति युक्त एकाग्र दृष्टि से चलते जैन श्रमणों को देखा था, तब अनुप्रेक्षा करते हुए उसे जैन आचार पर सम्यगश्रद्धा उत्पन्न होने से (त्यागी तपस्वी हलुकर्मी तो था ही) सहज भावों से समकित की प्राप्ति हो गई थी और उसी परिणामों में संथारे को पूर्ण कर सम्यग्दृष्टि सहित ईशानेन्द्र बना था। . सार यह है कि वह भगवान के पास भक्ति से दर्शन करने गया था और भगवान को सर्वज्ञ-सर्वदर्शी स्वीकार करते हुए गौतमादि को अपनी ऋद्धि 32 नाटक द्वारा बताई और भक्ति पूर्वक वंदन करके चला गया। इस वर्णन से भी उस इन्द्र का उस समय सम्यग्दृष्टि होना स्पष्ट होता है / ग्रंथों में यह भी प्रसिद्ध है कि वर्तमान के 64 ही इन्द्र सम्यग्दृष्टि हैं तथा एक मनुष्य भव करके मोक्ष जाने वाले हैं। अत: दानामा प्रव्रज्या की पालना करके इन्द्र बना हुआ वह चमरेन्द्र भी सम्यग्दृष्टि है तथा एक भव करके मोक्ष जाने वाला है। प्रत्येक जीव ने 64 इन्द्र रूप में अनंत भव किये हैं इस कथन अनुसार कोई भी इन्द्र कभी भी मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि दोनों प्रकार के हो सकते हैं / केवल वर्तमान के 64 इन्द्रों को सम्यग्दृष्टि एवं एक भवावशेषी मोक्षगामी मानने की परंपरा है। निबंध-१११ चमरेन्द्र का जन्म और अहंभाव ___ भरत क्षेत्र के विद्याचल पर्वत की तलेटी में 'बेभेल' नामक सन्निवेश था / वहाँ पुरण नामक गाथापति रहता था। उसने भी 'तामली' के समान समय पर साधना कर लेने का निर्णय करके दानामा प्रव्रज्या अंगीकार करी / चौमुखी काष्ट पात्र में भिक्षा ग्रहण करता / 207]
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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