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________________ आगम निबंधमाला कालधर्म प्राप्त हुआ एवं ईशानेन्द्र रूपमें उत्पन्न हुआ जाना-देखा तो अत्यंत कपित होकर मनुष्य लोक में आकर उसके शरीर की कदर्थना करी।पूँज की रस्सी बांये पाँव में बांधकर घसीटते हुए, तिरस्कारात्मक घोषणा करते हुए नगरी में घूमाया और अंत में गाँव के बाहर एक तरफ फेंक कर चले गये / इस हकीगत को अपने देवों द्वारा जानकर ईशानेन्द्र ने क्रोधित होकर अपने से नीचे एकदम सीध में रही बलिंचंचा राजधानी को अपनी तेजोलेश्या युक्त एकाग्र दृष्टि से देखा / जिससे वह बलिचंचा राजधानी ईशानेन्द्र के दिव्य प्रभाव से अंगांरा समान लाल होकर तपतपायमान होने लगी। वहाँ के देव-देवी हेरान परेशान होकर घबराने लगे, इधर उधर भागने लगे। आखिर असह्य स्थिति होने पर एवं ईशानेन्द्र के क्रोध प्रभाव को समझकर नम्र बनकर अनुनय विनय करते हुए ईशानेन्द्र से क्षमायाचना करी एवं आगे से ऐसा कभी नहीं करने का संकल्प लिया। तब ईशानेन्द्र ने अपने दिव्य प्रभाव से तेजोलेश्या को संहरित कर लिया / इसी प्रसंग से ईशानेन्द्र ने तिरछा लोक में अपनी साधना नगरी ताम्रलिप्ती को एवं राजगृही नगरी में विराजित. श्रमण भगवान महावीर स्वामी को देखा / ईशानेन्द्र प्रभु के अतिशय से प्रभावित होकर अपनी ऋद्धि सहित भगवान के दर्शन करने, पर्युपासना करने आया / भगवान के समवसरण में सूर्याभदेव के समान 32 प्रकार के नाटक दिखा कर चला गया / तब गौतम स्वामी के प्रश्न करने पर उत्तर में प्रभुने इस उपरोक्त घटना का दिगदर्शन किया / प्रश्न- ईशानेन्द्र पूर्वभव में तामली तापस था तो वह भगवान महावीर के दर्शन करने राजगृही में कैसे आया ? उत्तर- तापस के भव में बेले-बेले पारणा और पारणे में 21 बार आहार को धोकर खाना तथा दो महीने का पादपोपमगमन संथारा, उसमें भी बलिचंचा राजधानी के देव-देवीयों के प्रलोभन में नहीं आना एवं नियाणा नहीं करना; ऐसी विकट तपमय आदर्श साधना के प्रभाव से वह अत्यंत हलुकर्मी बन गया था / फिर देवगति स्वभाव से विशिष्ट अवधिज्ञान के कारण अपनी नगरी को तथा अपने शरीर को देखने में उपयोग लगाने पर महावीर स्वामी को भी देखा / उनक अतिशयों से / 206
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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