________________ आगम निबंधमाला नारकी देवता के नहीं होता है / अथवा इस भव संबंधी कोई भी इच्छा रखकर काशी करवत लेकर मरना भी तद्भवमरण है / (8) बाल मरण- सम्यग् दृष्टि या मिथ्यादृष्टि अव्रती का मरण (9) बाल पंडित मरण- देशविरति श्रावक अवस्था का, पाँचवें गणस्थान का मरण / (10) पंडित मरण- संयम अवस्था में, छटे या उससे आगे के संयत गुणस्थानों में मरना, वह पंडित मरण है अथवा संलेखना संथारा आलोचना शुद्धिपूर्वक मरण को व्यवहार से, सामान्य रूप से पडित मरण कहा जाता है। (11) छद्मस्थ मरण- केवलज्ञान हुए बिना ग्यारवें गुणस्थान तक मरना / (12) केवली मरणकेवलज्ञानी का चौदहवें गुणस्थान में मरना। (13) वैहायस मरणगले में फांसा लगाकर मरना, फांसी की सजा से मरना वैहायस मरण है। (14) गिद्ध स्पृष्ट मरण- जिसके मृत शरीर को गिद्ध आदि पक्षी खावे ऐसा मरण अथवा जीवित ही गीध आदि पक्षियों से या सिंह आदि पशुओं से खाया जाकर मरना, गिद्ध स्पृष्ट मरण है / (15-17) भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी मरण एवं पादपोपगमन संथारा, आजीवन अनशन स्वीकार कर मरना / इन तीनों का वर्णन आचारांग सूत्र अध्ययन-९ में है / इसके अतिरिक्त आचारांग एवं निशीथ सूत्र में गिरिपडण, तरुपडण, अग्नि- फंदण, जलप्रवेश, विषभक्षण आदि द्वारा बाल मरणों का कथन है उन सभी का यहाँ आठवें बालमरण में समावेश कर लेना चाहिये / निबंध-९५ सिद्धों के 31 गुण __ परंपरा में सिद्धों के आठ गुण गिने जाते है परंतु शास्त्रों में अनेक जगह सिद्धों के 31 गुण कहे गये हैं। प्रचलित आठ गुण- (1) अनंतज्ञान (2) अनंतदर्शन (3) अनंत सुख-अव्याबाध सुख (4) क्षायिक समकित (5) अक्षय स्थिति(अटल अवगाहना) (6) अमूर्ति (7) अगुरुलघु (8) अनंतवीर्य / ये भी शास्त्रानुसारी है, आचार्यों द्वारा गिनाये गये हैं / शास्त्रोक्त 31 गुण- (1-5) क्षीण मतिज्ञानावरण आदि / (6-14) क्षीण चक्षुदर्शनावरण आदि / (15-16) क्षीण शाता-अशाता |185