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________________ आगम निबंधमाला निबंध-१ . ___ आगमोक्त दिशाओं का ज्ञान दिशा शब्द से दिशाएँ और विदिशाएँ दोनों विवक्षित की जाने पर आगम में उत्कृष्ट 10 दिशाएँ कही गई है। अन्य अपेक्षा से कहीं 4, कहीं 6 और कहीं 8 दिशाएँ भी कही जाती है। वहीं व्याख्याकार 18 दिशाएँ भी अपेक्षा से गिना देते हैं और 18 द्रव्य दिशा और 18 भाव दिशा यों मिलान भी कर देते हैं। 18 द्रव्य दिशा- चार दिशा+चार विदिशा-८, इन आठ के कल्पित आंतरे(बीच के क्षेत्र) यों ८+८=१६+ऊँची दिशा+नीची दिशा-१८ द्रव्य दिशा / 18 भाव दिशा- ४स्थावर+४वनस्पति(अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कंधबीज)+४ शेष तिर्यंच त्रस (बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय)+चार मनुष्य(कर्मभूमि, अकर्मभूमि, अन्तीप, संमूर्छिम)+१देव +१नरक, इस प्रकार 4+4+4+4+1+1=18 / वास्तव में यह एक प्रकार की कल्पना व्याख्या और संख्या मिलान की तुकबंदी मात्र है / जिसे अपेक्षा मात्र से स्वीकार किया जा सकता है, एकांतिक ध्रुव सिद्धांत रूप में नहीं / सिद्धांत से तो उत्कृष्ट 10 दिशाएँ है और जीव के भेद 4 गति, 14 भेद, 24 दंडक आदि संख्याएँ सैद्धांतिक है / / निबंध-२ .. 27 क्रियाएँ आचारांग से - आत्मा. कर्मों के कारण से भव भ्रमण, संसार भ्रमण करती है और उन कर्मों की उत्पादक अर्थात् कर्मों को उत्पन्न कराने वाली जीव की क्रियाएँ है / वे क्रियाएँ यहाँ सूत्र में तीन शब्दों में संक्षिप्त करके 27 कही गई है। जिसमें आधार तीन करण, तीन योग और तीनों काल को बनाया गया है / तीनों कालों के मिलने से ही जीव का समस्त संसार भ्रमण चक्र चलता, बनता है / सूत्र में इन करण, योग और काल तीनों के संयोग से 27 भंग विवक्षित करके पहला, चौदहवा और सत्तावीसवाँ ये तीन भंग मूल पाठ में कहे गये हैं / 15 /
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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