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________________ आगम निबंधमाला 8400000 वर्ष पर्यंत संयम पालन करते हुए मानव देह में) विचरण करने के बाद सुखपूर्वक मोक्ष की प्राप्ति हुई। (3) अल्प समय और अधिक कष्ट से मुक्ति / यथा-गजसुकुमाल मुनि / कृष्ण वासुदेव के छोटे सगे भाई गजसकमाल मुनि को एक दिन की दीक्षापर्याय,१६ वर्ष की मात्र उम्र में भयंकर तीव्र दारुण वेदना सहन करते हुए अंतर्मुहर्त के कायोत्सर्ग में मुक्ति की प्राप्ति। (4) लंबे समय और कष्टमय संयोग के साथ घोर तप-संयम साधना से मुक्ति / यथा- सनत्कुमार चक्रवर्ती / उन्होंने 700 वर्ष की महान तपसंयम साधना और 16 महारोगों की तीव्रतम वेदना को सहन करके मुक्ति प्राप्त करी थी। तात्पर्य यह है कि मोक्षमार्ग सिद्धांत की एवं सभी के चलने योग्य राजमार्ग की रूपरेखा निश्चित्त की जा सकती है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप ये चारों की सुमेल युक्त साधना, यह मोक्ष मार्ग है। - उत्तराध्यन सूत्र अध्ययन-२८॥ परंतु किस आत्माको द्रव्यसाधना कितनी और किस साधक को भाव-परिणामों की कितनी साधना के बाद सफलता होगी यह निर्णय उस प्रत्येक व्यक्ति के पूर्व के कर्मसंग्रह की अवस्थाओं पर और वर्तमान संयोगो तथा योग्य प्रासंगिक पुरुषार्थ पर निर्भर होता है। जो उपर दिये गये चार दृष्टांतो से समझा जा सकता है / ऐसा सब कुछ होते हुए भी छद्मस्थ साधक को, उक्त दृष्टांत को ध्यान में रखकर राजमार्ग से संयम तप में, श्रावकधर्म-साधुधर्म में यथायोग्य पराक्रम करना ही श्रेष्ठ-सच्चा और एक दिन सफलता प्राप्त कराने वाला निश्चित्त मोक्ष मार्ग है / उसी में सही लक्ष्य के साथ, तल्लीनता पूर्वक पुरुषार्थ, सभी के लिये, सदा-सर्वदा उपादेय है, ऐसा समझना चाहिये / निबंध-६५ .. .... चार कषाय एवं 16 कषायों का स्वरूप क्रोध, मान,माया तथा लोभ चारों कषाय चारों गति में और 24 ही दंडक के जीवों में होते हैं। कहीं सूक्ष्म रूप में और कहीं प्रगट रूप में होते हैं। एकेन्द्रियों में संस्कार और अस्तित्व रूप में चारों कषाय होते हैं / उदय की अपेक्षा ये चारों कषाय अंतर्मुहूर्त में बदलते रहते हैं। अणुत्तरविमान के देवों में भी अस्तित्व के रूप में और सूक्ष्म उदय रूप में | 125
SR No.004414
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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